शुक्रवार, 4 मार्च 2016

वक्त बक्त की बात (मेरे नौ शेर )

(एक )

अपने थे , वक़्त भी था , वक़्त वह और था यारों
वक़्त पर भी नहीं अपने बस मजबूरी का रेला है

(दो )

वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है नहीं
कल तलक था जो सुहाना कल बही विकराल हो

(तीन )

बक्त के साथ बहना ही असल तो यार जीबन है
बक्त को गर नहीं समझे बक्तफिर रूठ जाता है

(चार )

बक्त कब किसका हुआ जो अब मेरा होगा
बुरे बक्त को जानकर सब्र किया मैनें

(पांच)

बक्त के साथ बहने का मजा कुछ और है प्यारे
बरना, रिश्तें काँच से नाजुक इनको टूट जाना है

(छह )

वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है

(सात)

मेहनत से बदली “मदन ” देखो किस्मत
बुरे वक्त में ज़माना किसका हुआ है

(आठ)

बक्त ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं

(नौ)
ना खाने को ना पीने को ,ना दो पल चैन जीने को
ये कैसा वक़्त है यारों , ये जल्दी से गुजर जाये

वक्त बक्त की बात (मेरे नौ शेर )

मदन मोहन सक्सेना

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here वक्त बक्त की बात (मेरे नौ शेर )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें