मंगलवार, 15 मार्च 2016

भीड़ में भी रहके अकेला हूँ मैं

भीड़ में रहके भी अकेला हूँ मैं
अकेले रहके भी खुश नही हूँ मैं

रुपये की ख़ुशी तो करोड़ो के गम
जिंदगी कटतीही है चाहे कितने हो गम
भीड़ में रहके भी अकेला हूँ मैं

ख़ुशी तो मानो टिकती ही नही
गम तो जैसे पाल रहे है
भीड़ में रहके भी अकेला हूँ मैं

जिंदगी तुझसे क्या माँगू और
दिल का हाल क्या सुनाऊ और
भीड़ में रहके भी अकेला हूँ मैं

वक्त बदलता है तो लगता है डर
मायूसी को आगे देखता हूँ अक्सर
भीड़ में रहके भी अकेला हूँ मैं

कहते है उम्मीद पे दुनिया कायम है
सदियोसे यही सुनता आया हु मैं
भीड़ में रहके भी अकेला हूँ मैं

आज नही तो कल होगा मेरा
जिंदगी तू साथ देना मेरा
करोड़ो के गमो को लड़ेंगे साथ
यकीन है हमे रहेगा तेरा साथ

भीड़ की तनहाई से ऊब चुका हु मैं
लड़ाई के लियें अब तैयार हूँ मैं
लफ्ज नही आगे के कुछ लिख पाऊ
तैयारी जो करनी है, बहोत कुछ सह पाऊ
भीड़ में भी रहके अकेला हूँ मैं

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here भीड़ में भी रहके अकेला हूँ मैं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें