————आँचल————-
जख्म किए खुद ही कपूत ने
अपनी माँ के आँचल में
निकले धारा लहू की अब
था दुग्ध भरा जिस आँचल में
सो पाएँ सुख और चैन से
ये कपूत इस खातिर ही
वीर हमारे सो जाते हैं
भारत माँ के आँचल में
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
9675426080
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