पगडण्डी के उस पार।होली आयी ।
होली आयी डरा गरीब
पखवारे भर का दाम
बस एक रात की शाम
उम्मीद लगाते बच्चे
किस्मत बेले पापड़
सहता त्योहारों का भार ।
पगडण्डी के उस पार ।।
चलो दिखाएँ खुशियाँ
पनपाती दुःख रूपी व्याज
ब्यवहरो में लाज
समाज झांकता चूल्हा
सस्ते व्यंग्यों के वाण
निर्धनता के अनुसार ।
पगडण्डी के उस पार ।।
सब रंग दिखे दो रंग
फ़बते गजब अजीब
अमीर और गरीब
काला और सफेद
बदरंग करें हुड़दंग ,दूसरा बेबस ,
सहता किस्मत की मार ।
पगडण्डी के उस पार ।।
__©राम केश मिश्र
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