बच्चों, निर्दोषों, अबलाओ की हत्या पर अमन चैन की दुहाई देने वाले इस्लामिक आकाओं को ललकारती मेरी ताजा रचना —
रचनाकार- कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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कहाँ मुसल्लम की ठेकेदारी है और ईमान कहाँ
अमन चैन चिल्लाने वाला वो भडुआ इंसान कहाँ
कहाँ गया इस्लाम धर्म को नेक पाक कहने वाला
पैगम्बर का दूत और वो मानवता का रखवाला
कहाँ गये आरएसएस को आईएस जैसा कहने वाले
कहाँ गये मुल्ले काजी वो भारत में रहने वाले
कैसा अमन चैन फैलाया इस जग में इस्लामी ने
असुरों को भी पीछे छोड़ा आज पुरुष इस कामी ने
आँखों में है हवस लहू से लथपथ मुख इनके सारे
खुद को रक्षक कहते सब हैं मानवता के हत्यारे
खतरा खुद ही बन बैठे चिल्लाते हैं खतरा खतरा
अबला मासूमों को भी अब कर डाला कतरा कतरा
जिसको ना था ज्ञान जहाँ में झूट और सच्चाई का
जिसको ना था भान बुराई का ना और अच्छाई का
जिसके मात पिता ही उसके जीवन के पैगम्बर थे
माता ही तो धरा थी उसकी और पापा ही अम्बर थे
उस मासूम से भी खतरा इस्लाम को तो ये धर्म नहीँ
ये रस्ता है हत्यारों का ये जीवन का मर्म नहीँ
जिसने नारी को बच्चों की एक मशीन बताया है
जिसने बिनबोलो का हरदम माँस यहाँ पर खाया है
सब मुल्लो जाकर कह दो उन इस्लामिक आकाओं से
धर्म नहीँ बस जाल है ये जिसको खतरा अबलाओ से
धर्मअन्ध की अंधाधुंध में अब मत जाना भूल यहाँ
गुलशन के संग में हमने भी उपजाए हैं शूल यहाँ
सुन लो नीच नपुंसक सारे अब बगदादी के पिल्लो
दम है तो आओ मैदान-ए-जंग में अब सारे मुल्लो
जिस दिन राणा के रण की बुझती चिंगारी भड़केगी
बन्दा वीर बहादुर की धड़कन जब दिल में धड़केगी
रक्त लगेगा दुश्मन का जब जंग लगी तलवारों में
आग लगेगी मोमिन के जेहादी अत्याचारों में
ये “देवेन्द्र आग” कहे सोया हिंदू जग जाएगा
अल्ला अकबर चिल्लाते मुख में ताला लग जाएगा
फ़िर न चलेगी बात बात पर बेहूदी फतवेबाजी
बच्चों और अबलाओ पर ये अब घटिया सौदेबाजी
गीदड़ और सियारों की ये नस्ल ख़त्म हो जाएगी
खुद की चाल से भस्मासुर की देह भस्म हो जाएगी
अमन चैन मानवता के जग में किस्से गढ़ जाएँगे
छोड़ कुरानी आयत सब भगवत गीता पढ़ जाएँगे
————–कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
Read Complete Poem/Kavya Here इस्लामिक आतंक
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