——–लोकतन्त्र के आँगन में———
शशि की शीतलता थी रवि की धूप खिली थी आँगन में
जाति धर्म की हँसती गाती हरियाली थी आँगन में
पर ये राजनीति की चालों का कैसा पतझड़ आया
आरक्षण ने आग लगा दी लोकतन्त्र के आँगन में
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
9675426080
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