दिल की सुनें या दिमाग़ की
ये जद्दोजहद तो बरसो पुरानी है
दिल धोखे का मारा है
और दिमाग़ की …
उसकी तो अपनी अलग कहानी है
ये कस्मकश रहती है हर इंसा को
चाह कर भी कोई राह नज़र नहीं आती
फिर भी ख़ुश है इस उलझन में
कामयाब होने की एक उम्मीद …
बस वही दिल से नहीं जाती
निशा
Read Complete Poem/Kavya Here उम्मीद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें