भावना शुन्य चेहराे पर
तमाम कलाकारी इस मन की
शब्दों से घोलते है रस
आंखो की बेइमानी इस मन की
छोटे से पोखरे की छोटी सी मछली हम
समन्दर सा कौतुहल इस मन का
भाव विहिन अम्बर में
सारी कशीदाकारी इस मन की
अभिलाषा अर्पण कर दू
सारी अस्थिरता इस मन की
इस सहज जीवन में
सारा खोखलापन इस मन का
सविता वर्मा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें