बारिश के पानी में
चलती कागज़ की कश्ती
महीन धागो पर
चलती माचिस की रेल
कितने निराले थे वो बचपन के खेल !!
बिन मौसम की
बारिश में ओले गिरते
चाव से समेटकर
उन्हें रखने में होते फेल
कितने निराले थे वो बचपन के खेल !!
परनाला रोक
छत पर पानी भरना
भीगते हुए फिर
उसमे मस्ती से जाते लेट
कितने निराले थे वो बचपन के खेल !!
बहरी दुपहरी में
घर से निकलना
पोखर में नहाकर
खाते झाडी के बेर
कितने निराले थे वो बचपन के खेल !!
पेड़ के पीछे खड़े हो
लगाते लम्बी सी टेर
हाथो से बंधकर
बनाते लम्बी सी बेल
कितने निराले थे वो बचपन के खेल !!
गाँव मोहल्ले की
वो संकरी गलिया
जिनमे छुप छुप खेले
चोर सिपाही के खेल
कितने निराले थे वो बचपन के खेल !!
टोली में निकलते
करते जंगल की सैर
अमवा की छावँ
बैठ कर खाते थे बेल
कितने निराले थे वो बचपन के खेल !!
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डी. के. निवातियां_______@@@
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