सोमवार, 14 मार्च 2016

* कामनी *

* कामनी *

कनक छड़ी सी कामनी

सुन्दर वन की वासनी

बोले ऐसे जैसे बुलबुल

चले ऐसे जैसे हिरणी

नाचे ऐसे जैसे मोरनी ,

उसका रूप है अनमोल

सूरत सीरत का न कोई तौल

वह है ऐसे जैसे उगता सूर्य

चाँद की हो चाँदनी ,

उसके लिए क्या मैं लिखूं

वह है मधुमिता

वह है सुस्मिता

कोई नहीं उसके जैसा

कनक छड़ी सी कामनी।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here * कामनी *

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें