देशद्रोह के गद्दारो को पीटने वाले वकीलों के समर्थन में आवाज़ उठाती तथा आरक्षण की आड़ में आग लगाने वालों को ललकारती मेरी ताजा रचना —
रचनाकार-कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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हम शमशीरो की नोक से ही
लिखने वाले अपनी किस्मत
फिर छुप कर देख नहीँ सकते
भारत माँ की लुटती अस्मत
मर जाएँगे मिट जाएँगे
हो जाएँगे बलिदान यहाँ
पर उससे पहले शत्रुदलों को
कर देंगे शमशान यहाँ
सब देखो आज कोट काला भी
ये हमको बतलाता है
कपड़े काले दिल ना काला
बस आज यही सिखलाता है
ऐसे ही खून खौल जाए
हर वर्दी और वकीलों का
तो केश ख़त्म ही हो जाएगा
भटकल और शकीलों का
जब देश प्रेम की हर इक दिल में
भभक उठी है चिंगारी
तो आरक्षण की आग
लगाने की करली है तैयारी
अब जयचंदों ने आग लगा दी
हँसती खिलती बस्ती में
अब माँग रहे आरक्षण
जो रातों दिन झूमें मस्ती में
अब कठपुतली बन रहे हैं सब ही
पाकिस्तानी चालों की
अब खुद ही आज नमक बनते
जो दवा बने थे छालों की
होली से पहले ही हरियाणा
जला जला कर दी होली
अब दिखते हवस वासना के मुख
जिनमें थी सूरत भोली
अब देशद्रोह भी दिखता है
इन दुष्टों की करतूतों में
अब आरक्षण की दाल पिलाओ
इनको भरकर जूतों में
अब तोड़ दो आरक्षण की
ज़ंजीरें घोडों के पैरों से
रुकती गाड़ी को मिल जाए
छुटकारा ऐरो गैरों से
ये “देव” कहे भारत माँ के
घर में जो आग लगाए जी
अब उसी आग में उसे जलाओ
जब तक ना मर जाए जी
अब तो कर डालो देशद्रोह के
बंद, बुलंदी नारों को
अब सबको है हक आग लगा दो
इन अफजल के यारों को
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
9675426080
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