सोमवार, 21 मार्च 2016

तुम बिन होली में............( विरह गीत )

तुम बिन होली में….!

ये मुझ पे कैसी पड़ी है पीर
तुम बिन होली में, पिया तुम बिन होली में….!
मोहे भाये न गुलाल अबीर,
तुम बिन होली में, पिया तुम बिन होली में….!

सखी सहेली सब मोहे छेड़े
तेरी जुदाई मेरा दिल तोड़े
आस नहीं कोई तेरे मिलन की
रो रो के बहे नयन से नीर, तुम बिन होली में,
मोहे भाये न गुलाल अबीर, तुम बिन होली में !!

फाग के मौसम में जियरा बहके
होली की अगन में बदन है दहके
फूल भी अब तो लगते कांटो जैसे
मुझसे सही न जाए ये पीर, तुम बिन होली में,
मोहे भाये न गुलाल अबीर, तुम बिन होली में !!

व्याकुल मन में शंका जागी
रातो से मेरी निंदियां भागी
जाने किस हाल में होंगे प्रीतम
अब कोई आके बंधाये धीर, तुम बिन होली में,
मोहे भाये न गुलाल अबीर, तुम बिन होली में !!

तेरे बिन नही कुछ अच्छा लगता
नीरस मन से जीवन सूना लगता
प्राण बसे है मगर अब जान नही
मानो नश्वर हुआ शरीर, तुम बिन होली में,
मोहे भाये न गुलाल अबीर, तुम बिन होली में !!

ये मुझ पे कैसी पड़ी है पीर
तुम बिन होली में, पिया तुम बिन होली में….!
मोहे भाये न गुलाल अबीर,
तुम बिन होली में, पिया तुम बिन होली में….!

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डी. के. निवातियां____@@@

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