शुक्रवार, 11 मार्च 2016

कोई जुआ कहता है…………कोई जंग कहता है,

कोई जुआ कहता है…………कोई जंग कहता है,

जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!

ये तो मौसम की तरह है,
रुत इसकी आनी जानी है
देखकर फलसफा जिंदगी का
यहां हर कोई दंग रहता है !

जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!

कोई जीता है इसे खेल समझकर
किसी को लगती ये एक पहेली है,
इससे उलझा है हर एक इंसान
हर कोई अपने -२ ढंग से जीता है

जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!

कोई वरदान समझकर के
जीवन का लुफ्त उठाता है
कोई समझकर इसको बोझ
व्यर्थ जीवन को गँवा देता है

जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!

किसी की लगती है ये दुआ जैसी
तो कोई इसको अभिशाप कहता है
ये तो बनी अर्धांग्नी बस उस की ही
जो हर सुख दुःख में गले लगाता है

जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!

जिंदगी तो है सप्तरंगी बेला
जीवन को फूलो सा महकाती है
कर्म है इसके परमानंद की कड़ी
जिसने जाना ये मर्म सफल कहलाता है

जिंदगी को कोई जुआ कहता है, तो कोई जंग कहता है,
धर्म कहे नदिया की धार, जिसमे हर कोई संग बहता है !!

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@___डी. के निवातियाँ___@

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