मंगलवार, 22 मार्च 2016

महेन की बुझती ज्योति

आज दुल्हन के लाल जोड़े मे,
उसे सखियों ने सजाया होगा .

मेरी जान के गोरे हाथो को
मेहँदी से रचाया होगा

गहरा होगा मेहँदी का रंग
उसमे नाम छुपाया होगा

रह रह कर वो रोई होगी
जब भी ख्याल मे आया होगा

दर्पण मे खुद को देखकर
अक्स मेरा ही पाया होगा

परी सी लग रही होगी वो आज
मगर कैसे खुद को समझाया होगा

अपने हाथो से उसने आज
खतो को मेरे जलाया होगा

मजबूत खुद को करके उसने
यादों को मेरी मिटाया होगा

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here महेन की बुझती ज्योति

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें