मंगलवार, 22 मार्च 2016

“वर्तमान की विडंबना"

हर राष्ट्रवादी रों पड़ा,
उन छात्रों के काले करतूतों से,
हर भारतीय शर्म से पानी हुआ,
उन देशद्रोह के नारों से ।

देश का नमक खा कर भी तुम,
देश के टुकड़े चाहते हो,
अगर "अफज़ल” को आदर्श मानते हो
तो "कलाम” के देश के क्यों रहेते हो ।

दोगलेपन की दहलीज़ पे खड़े रहकर,
समानता की बातें करते हो,
जिस संविधान से आतंकियों को सज़ा मिली,
उस महामहिम को चुनौती देते हो ।

अलगाववाद के राग आलापते रहेंगे,
अभिव्यक्ति के नाम पे,
गरीबों के ठेकेदार बनते रहेंगे,
आज़ादी के नाम पे ।

समाजवाद के नाम पे सिर्फ सत्ता की रोटियाँ शेकना आता है,
पर भारत में तो समाजवाद राष्ट्रवाद क दुश्मन बन जाता है ।
इस गद्दार गिरोह ने तो सब्र की सीमाएँ लाँघ दी,
जब सेना के जवानों की बलात्कारियो से तुलना की ।

वीरों की विजयगाथा की जगह,
कायरों की वाहवाही होती है यहाँ,
शहीदों के सम्मान की जगह,
जयचंदो की जयकार होती है यहाँ ।

अगर "वंदे मातरम्” बोलने में विचारधारा बिच में आती है,
तो खून की जाँच करवालो अपने, क्योंकि खून नहीं वो पानी है ।
अब ऐसी परिस्थितियों में भी अगर खून तुम्हारा नही खौला,
तो समज लेना के खून में तुम्हारे देशप्रेम का एक कतरा भी नही बचा ।

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