हम रोज चुनौतियों से खेलते है
और तक़दीर रोज हम से खेलती है
क्योंकि ये ही हमारी नियति है
जन्म से अब तक ये खेल यूँ ही जारी है
वैसे तो हम जानते है की
अब तक जीत किसकी होती रही है
लेकिन जाने ये कैसा उसका दिया ही जज्बा है
जो हर बार हार कर भी खत्म होकर भी
रोज तक़दीर से लड़ने को खड़ा हो जाता है
Read Complete Poem/Kavya Here ********तक़दीर का खेल ********
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