सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

प्रधानी

गाँव में चुनावी माहौल है|
दबंगो के हाथों में पिस्तौल है||

घूमते फिरते हैं बनके नबाव|
वोटरों पर बनाते हैं अपना दबाव||

उम्मीदवारों को प्रधानी का बुखार है|
लगता है जैसे गाँव में त्यौहार है||

गली-गली में पंचायत लगी है|
हर दीवार विज्ञापनों से सजी है||

प्रत्याशी पिला रहे हैं वोट के बदले शराब|
लोगों की कर दी है आदत खराब||

सभी बखान कर रहे हैं अपनी ईमानदारी|
मगर वोटरों से नहीं छुपी है उनकी भ्रष्टाचारी||

प्रत्याशी दिखा रहे अपनी-अपनी दम|
नहीं पड़ रहा कोई किसी से कम||

बनके सभी आते हैं वरदाता|
वादा अपना कोई न निभाता||

परस्पर विचार कर रहे हैं मतदाता|
प्रत्याशियों की किस्मत के वही हैं विधाता||

योगेश कुमार 'पवित्रम'

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Some More Time.....

दो घड़ियाँ …

दो घड़ियाँ लेकर चलूँ मशाल
उस अँधेरे को बेबस कर दूँ
जख्म की ताकत हो जितनी
उससे दुगनी मरहम भर दूँ !

दो घड़ियाँ मैं दे दूँ आस
कुछ सपने अभी परेशान है
मेहनत पे लगे सवालों को
कयामत का इंतज़ार है !

दो घड़ियाँ छुपालूँ वक्त से
बिछड़ते साँसों की राहत सुन लूँ
दस्तक देनेवाली उल्फतों से कभी
यादों में कुछ सुकून तो चुन लूँ !

दो घड़ियाँ मैं कर दूँ कुरबान
उन अन्जान गलियों की पहचान बन जाऊँ
उन राहों की उम्मीद बनकर
जुल्मों को बेसहारा कर जाऊँ !

दो घड़ियाँ मैं बनादूँ ख़ास
कुछ जरूरतें जीने के अरमान है
रहे ना भूखा कोई, तन हर किसीका ढका
सर पर छत हो ऎसा कुछ बयान है !

दो घड़ियाँ सीख लूँ जीना
बातों में, इरादों में ठहराव हो सही
रिश्तों की कड़ियाँ होती है नाज़ुक
हर जस्बात का एहसास हो सही !

दो घड़ियाँ कर लूँ सलाम
देश की मिटटी को नाज़ों से छू लूँ
सरहद पर जो पहरे है हज़ार
उन अनगिनत कुरबानियों को दुआओं से छू लूँ !!

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breathlessboy

Poems, shayari, quotes, and srory of love, breathless

Source: breathlessboy

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कीसी कमजोर लम्हे में
अगर मैं तुमसे ये कह दुं
मुझे तुमसे मोहब्बत है

तुम ये मत समझ लेना
मैने सच कहा होगा
ऐसी दिलकश बातों को
ऐसे दिलबर प्यार में कहना
मुझे खुब आता है

मेरी आखें मेरा चेहरा
मेरा ये मासुम लहजा
ये सब झुठ कहता है
मगर

इस झुठ में एक सच है
मुझे तुमसे मोहब्बत है।।।

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Meri Jindgi

Meri Jindagi

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काश मैं कवि होता

काश मैं कवि होता
स्वचंद पंखी ओ आकाश में
मैं विहग वान हजारो गढता
किसी सुंदरी की जुल्फो मैं
कभि सोता कभि खोता
काश मैं कवि होता
नित नयी कल्पना के पंख लगा
अंबर मे मैं भि उड़ता
नव पल्लव तरू की डाली
पे मैं भि कोयल सि गाता
काश मैं कवी होता
कही छुपी सायरी को बनाता
अकेले बैठे गुनगुनाता
कई अनकही बाते बताता
कई सुर ताल मिलाता
काश मैं कवि होता
बेर ओर बसंत को मिलाके
नई नई ऋतु बनाता
उनमे तुझको बुलाता
सपनो सा सजता
काश मैं कवि होता
कयी बातें अनकहि
उनसे राज खोल पाता
नयनों की भाषा तेरी
दिल में हि सुनाता
काश मैं कवि होता
आसमान पे लिखता
तेरा नाम बादलों से
प्यार से तेरे भिंग
फिर बरस पड़ता
काश मैं कवि होता
एक पल में हज़ारो
सदियां जीता जाता
ओर कयी सदियां
शब्दों में सजाता
काश मैं कवि होता

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Silence Speaks.....

मैं और मेरी तन्हाई

कितने ही सावन बीते है
पतझड़ भी कई देखे है
बारिश के उन हर लम्हों को जीते हुए
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!

रिश्तों के दायरे में सिमट गयी
कितने हे अरमान यूँहीं कभी
आँखें मूँदें कोने में लिपटी
कितने ही ख़याल यूँहीं कभी !
उल्फतों को हँसकर जी लेते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!

उम्र के हर पड़ाव पर
नयी पुरानी कुछ चुनोतियाँ
मन में सवालों को उलझाती
कुछ अनचाही मजबूरियाँ !
बेवजह बिखरकर सँभलना जानते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!

हम अपना कसूर ढूँढ़ते रहे
अजनबी जस्बातों के महफ़िल में
सुकून की इतनी फितरत नहीं
के साथ दे जाए मुश्किल में !
अपने हालात पे कभी नज़र लग जाते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!

कोई करे वादों का हिसाब
किसीका आरजू फरमान बना
इम्तिहान लेता सारा जहाँ
तो दुआ भी जंजीर बना !
इस कश्मकश को जीने की वजह बनाते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!

दामन के धागों में अब भी
कुछ रंग अधूरे है
ख़ामोशी के सिलवटों में आज भी
कुछ अल्फाज़ अधूरे है !
जिंदा रहकर भी होश गँवारा लगते है
मेरी तन्हाई अक्सर कुछ छुपाते है !!

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रविवार, 28 फ़रवरी 2016

"यकीन मुझे भी था"

सबको पेहले से ही ये लगता था के कोई तेरा ना होगा ।
यकीन मुझे भी था के तेरे सिवाय कोई मेरा ना होगा ।
सफर मे कई हसीन चेहरे गुजरेगे सामने से मेरे पर ,
मेरी आँखो मे सिवाय तेरे किसी का चेहरा ना होगा ।
बसाई हैं मेने तेरी चाहत ईतनी ईस मुट्ठी जितने दील मै ,
मेरी शर्त हैं सारे जहाँ से समंदर भी ईतना गेहरा ना होगा ।
रोज आजाया कर ऐसे ही किसी बहाने से सामने मेरे ,
तुझे देखे बिना दिन तो होगा पर वो दिन सुनेहरा ना होगा ।
-एझाझ अहमद

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ज़ालिम ज़माना – मेरी शायरी……. बस तेरे लिये

ज़ालिम ज़माना

चुपचाप लेटा था मैं तो मौत की आगोश में
ज़ालिमों ने जलाकर ………………..
फिर भी मुझे राख कर दिया

!
!
!

शायर : सर्वजीत सिंह

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आज़ाद मरते नही- सोनू सहगम

aazad

-: आज़ाद मरते नही :-

ग़ुलामी की बेड़ियों में रहना ,
उन्हें एक पल भी गवारा नही ।
कहा जब दहाड़कर -विरोधियों को
आज़ाद हूँ मैं , ईमान मेरा अभी मरा नही ।।

पर्वत शिखर की भाँति
थे उनके हौशले, इरादे
कहते सभी -अभी बच्चे हो
सबको दिखाई कमर तोड़ वक्त की,
बोल नही थे , जो कंठ से निकले उनकी
थी वो सिंह की दहाड़ ,
गर्जना थी वो खोलते रक्त की ।।
उनके मुख से निकला हर स्वर,
तरुणों में जोश भरता था,
देश का नौजवान, बच्चा – बच्चा ,
खुद को आज़ाद समझता था,।।
मृत्यु से डरना ,जिसने सीखा जरा नही ।।

आज़ादी का जोश ,उनके सीने में,
ज्वालामुखी बनकर धड़कता था।
बड़े बड़े दुश्मनों के सम्मुख भी,
पठ पर हाथ- मूँछो पर ताव मारता था ।।
इतिहास का था वो काला दिन
अल्फ़्रेड पार्क में घटना जो घटनी थी,
एक आज़ाद शेर के शिकार को ,
अंग्रेज नही,निकली गीदड़ को टोली थी ।।
दुश्मन के हाथो पकडे जाना ,
उनके स्वाभिमान को काबुल न था ।
खुद को मारी जब गोली
चहरे पर तनिक शिकन न था।।
“मरते नही आज़ाद”
(लेखक:- सोनू सहगम)

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दिवाना एक बेवफा का

तेरी बेवफाई के लिए भी सेज़ मै सजाऊंगा
तेरी ख़ुशी के लिए,अपनी ख़ुशी का जनाजा मै उठाऊंगा
दुनिया भी देखेगी , तेरी इस बेहयाई को
तेरी चुनरी से अब,अपना कफ़न मै बनाऊंगा

हाथो में लगी मेहँदी का रंग,तेरा फीका पड़ जाये न
अपने खून के हर कतरे से,तेरा हाथ सजाऊंगा
तू सजेगी और संवरेगी ,भूलकर अपने इस दीवाने को
ये दीवाना तेरी खातिर ,शहनाई भी बजायेगा

तू मुझको भी याद करेगी,ऐसा कुछ कर जाऊंगा
कांटा तेरे कदमो को न लगे,फर्श मै बन जाऊंगा
तू उठेगी और जाएगी,अपने घर साजन को
तुझको रुखसत करने के बाद,जिन्दा दफ़न हो जाऊंगा

तेरे लिए मौला से कहकर ,एक अलग जन्नत बनवाऊंगा
तेरी हर खता के लिए,खुद को सजा दिलाऊंगा
मौला भी रोएगा,और कहेगा बस
अब फिर कभी न मै,ऐसा दीवाना बनाऊंगा

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किताबें

बचपन में पढ़ी –
किताबें ,
अब सुकून नहीं देतीं .

उनके साथ ,
पन्नें पलटते ,
देखे थे ,
मैंने ,
कई सपने .
तरह तरह के
और सारे रंगीन .

अब वक़्त के साथ,
बिखर गए हैं सभी .

पर मज़ा यह है की,
किताबें अब भी हैं मेरे पास,
उन सपनो की तस्कीद लिए,
जो बाँट सकती हैं – सपने ,
मेरे और उनके बच्चों में .

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ग़र सच्ची है मोहब्बत मेरी...

ग़र सच्ची है मोहब्बत मेरी, उसे एहसास तो होगा,
मोहब्बत का ये मारा दिल, इक उसके पास तो होगा,
तसव्वुर में वो जिसके खो के थोड़ा चैन पाते हों,
चलो हम ना सही, कोई यूं उनका ख़ास तो होगा।

भले ठोकर ही मारें वो समझ के राह का पत्थर -२
वो ठोकर से मिला हर ज़ख़्म लेकिन ख़ास तो होगा।

मोहब्बत को तेरी सिचुंगा अपने आँशुओं से मैं,
गुलिश्तां दिल का ये मेरा, यूहीं आबाद तो होगा।

के अब तो जान लेके हम हथेली पर निकलते हैं-२
यूँ जी के भी करेंगे क्या, तेरा ना साथ जो होगा।

बड़े मरते हैं आशिक़, हम भी मर जायें तो क्या गम है-२
ज़माने भर मोहब्बत का फ़साना याद तो होगा।

*विजय यादव*

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शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

गुलजार से तुम

अंधेरी रात में पूरे चाँद से तुम
ठिठुरती रात में मधम आग से तुम
अधजगी रात में पूरे नींद से तुम
घुप अंधेरे में एक चिराग से तुम
बन्द घर में खुल जाते खिड़की से तुम
ज्यादा मेरे लिए थोड़े अपने लिए तुम
नितान्त तन्हा मन में गुलजार से तुम

सविता वर्मा

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सुनो न,
देखो बुन रही हूँ
स्वेटर तुम्हारे ख्यालों का
मन की सलाइयों से
एक एक फंदा तुम्हारी यादों का
रेशम सा सुनहरा
जो तुमने दिया था अब वो धागा न रहा
पहनोगे न तुम।।

सुनो न
देखो सुन रही हूँ
धुन तुम्हारी चुप्पी की
लबों पे जो सजी थी बांसुरी सी
और सौत सी तकलीफ देती
अदृश्य वायु से तुम्हारे शब्द
जो कभी कहे ही नही गए
लिख रही हूँ एक गीत उनसे
एक नई सरगम गढ़ूंगी
सुनोगे न तुम।।।।

सुनो न
देखो चुन रही हूँ
फूल तुम्हारी मोहब्बत के
भर रही हूँ पोटली में
जो बीज बोया था मन की कोरी माटी मे
उग गया है अब उफ़्फ़ कांटे भी हैं
पर कोपलें भी फूट पड़ी हैं
रक्तिम लालिमा सी लिए
पर गूँथ डालूंगी इन्हें मन की माला में।
अपनाओगे न तुम।।

“सरगम अग्रवाल”

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पुकार............

आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!

एक दूजे के सब दुश्मन हो गए
हर कोई दूसरे पर कर प्रहार रहा
रोज कही पे पंगा, कही पे दंगा
और हो कही पर बलात्कार रहा !

आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!

भूल गए आज तुम्हारी कुर्बानी
अपना मतलब सबको याद रहा
जिसको दी देश की जिम्मेदारी
वो जीवन आनद से गुजार रहा !

आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!

कोई कहता यंहा क़ानून गलत है
कोई दोष संविधान में निकाल रहा
अपनी गलतियों का आभास नहीं
व्यर्थ गुस्सा व्यवस्था पे उतार रहा !

आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!

कौन है रक्षक, कौन है भक्षक
इसका नहीं अब कोई भान रहा
अपना ही अपने को मारने लगा
अब तो चहुँ और हो नरसंहार रहा !

आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!

सत्ता की भूख मिटाने को आज
सब नियम कायदो को भुला रहा
जुर्म की लंका में सब बावन गज के
नहीं अब कोई दूध का धुला रहा !

आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!

कोई आग लगाये, कोई तमाशा देखे
कोई नफरत की आंधी को चला रहा
असहाय निर्दोष की जान पे आई है
कही दोषी मजे से गुलछर्रे उड़ा रहा !

आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!

अब तो आ जाते इन आँखों में आंसू
देश “धर्म” का कितना हो बेहाल रहा
आ जाओ में मेरे देश के स्वभिमानो
देश का दुश्मन फिर तुम्हे ललकार रहा !!

आ जाओ गांधी, भगत, सुभाष, ये देश आज तुम्हे पुकार रहा !
दिया जो तुमने अनमोल तोहफा आजादी का हो अपमान रहा !!

!
!
!
डी. के. निवातियां___

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उसूल बदलने होंगे

चली थी ज़िंदगी जिन उसूलों पे अब तक,
और न जाने चलेगी ये कब तक ।

बदल गया ज़माना अब उसूल भी बदलने होंगे,
वर्ना खायेंगे खोखा, और रोते रहेंगे ।

आइना नया बनाना पड़ेगा,
नज़रों से सबकी छुपाना पड़ेगा ।

असलियत देखा दे जो इंसा की मुझको,
संभल जाऊंगा , बचा लूंगा खुदको ।

जियूँगा ज़िंदगी, शर्तों पे अपनी,
सुनूंगा सबकी, करूँगा बस दिलकी ।

अच्छा हुआ तो मिसाल बनूँगा,
बुरा हुआ तो किसे से न कहूँगा ।

छंट जायेंगे दोस्त, परिजन और कुछ चाहने वाले,
बच जायेंगे जो, वही होंगे साथ चलने वाले ।

बहुत कम भी हौ, तो भी गम ना करूँगा,
ख़ुशी से जियूँगा, कभी शिकवा ना करूँगा ॥

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भीड़ का हिस्सा

मां
तुमने कहा था न
मत बनना
भीड़ का हिस्सा
मैं नहीं बना।
पर मां
तुम तो चली गई वहां
जहां से कोई लौटता नहीं।
देखो न
भीड़ के पास क्या नहीं है।
गाड़ि़यां, आदमी, दौलत, औरत, शराब, सत्ता
वो मस्त हैं।
उनके बच्चों का बीमा है
बीवी के लिए सातों दिन के कपड़े हैं
अलग-अलग रंग और डिजाइन के
बच्चे मोटर में बैठते हैं
कलर के हिसाब से
इस दुनिया ने मुझे
दो जून की रोटी के लिए
तरसा दिया है मां
भीड़ का हिस्सा होता तो
तुम्हारे पोते-पोती के
स्कूल का फीस भरता
प्रिंसिपल की रिमाइंडर
मेरे मोबाइल के
मैसेज बाक्स तक आने के पहले
1000 बार सोचती
पर
तुम्हारा कहना मैंने माना
मैं भीड़ का हिस्सा नहीं बना।
मां,
एक बात बता दो।
सपने में ही बता देना।
जब तुम जानती थी कि
भीड़ का हिस्सा बनने में ही फायदा है
तब तुमने अपने इस भोले बच्चे को
भीड़ से अलग रहने की
कसम क्यों दी थी मां?
क्यों???

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खेदारु.......IBN

खेदारु…. एक छोटी सी कहानी….

गंगा नदी के तट से कुछ दूर पे एक छोटा सा गाँव (चांदपुर) बसा है ! जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले मे स्थिति है,उस गाँव मे (स्वामी खपड़िया बाबा ) नाम का एक आश्रम है, जहाँ बहुत से साधु-महात्मा रहते हैं !

उन दिनों गर्मियों का मौसम था, एक महात्मा आए हुए थें ! जिनका नाम स्वामी हरिहरानंद जी महाराज है, बाबा हर शाम को उस आश्रम मे सत्संग (प्रवचन) सुनाया करते थें ! जिसे सुनने आस-पास के गाँव के लोग और दूर के गाँव के लोग भी आते थें !
उस दिन बाबा इंसानी प्रवृति और नशे की चीज़ों जैसे- गुटखा,खैनी,बीड़ी,सिगरेट,जर्दा,शराब आदि जैसी नशीली चीज़ो पर (जो कितना बुरा असर करते हैं इंसानी शरीर पर ) इसके बारे मे लोगों को बता रहे थें,(प्रवचन दे रहे थें) !

सभी लोग बड़े ध्यान से बाबा का प्रवचन सुन रहे थें ! तभी बाबा की नज़र उस इंसान पे पड़ी जो बिल्कुल उनके सामने (सबसे आगे चौकी के नीचे ) बैठा था ! सभी लोग तो बड़े ध्यान से बाबा का प्रवचन सुन रहे थें, पर वो इंसान बड़े ही लगन से अपने हथेली मे खैनी (तंबाकू) रगड़ने (बनाने) मे ब्यस्त था ! अचानक से बाबा की नज़र पड़ी उसपे, बाबा ने उसे अपने पास बुलाया और उससे उसका नाम पूछा !
वो बोला बाबा…..हमरा नाम खेदारु है बाबा, इहे पास के गाँव का रहने वाला हूँ !
बाबा बोलें ठीक है, ये बताओ तुम खैनी (तंबाकू) कब से ख रहे हो ! वो बोला बाबा ई त हम बचपन से जब ८-९ साल का रहा, तब से खा रा हूँ ! फिर बोला बाबा हमरा से कवनो ग़लती हो गया का, माफी चाहता हूँ बाबा, बहुत दिन से हमहु चाहता हूँ, ई का (खैनी.) को छोड़ना पर का करूँ बाबा ई (खैनी) हमरा को छोड़ती ही नहीं ! बहुतई कोशिश किया हूँ,बाबा पर ई (खैनी) हमका नहीँ छोड़ती !

उसकी बातें सुनने के बाद, बाबा बोलें- लाओ दिखाओ वो (खैनी) जो तुम्हे नहीं छोड़ती,ज़रा हम भी देखें वो क्यों नहीं छोड़ रही तुम्हे ! फिर खेदारु ने अपनी पेंट की जेब से चीनौटी (एक छोटी सी डब्बी जिसमे खैनी रखते हैं) नीकाली और बाबा को दे दिया !
बाबा चीनौटी को अपने बगल मे रख के खेदारु को बोलें जाओ और अपनी जगह पे बैठ जाओ, और हाँ जब तुम्हे इसे (खैनी) खाने का मन करे तो इसे अपने पास बुला लेना ! तुम मत आना इसके पास चल के इसे खाने के लिए ! फिर देखते हैं क़ि ये तुम्हारे पास चल के जाती है या तुम खुद चल के इसके पास आते हो !
अगर ये (खैनी) तुम्हारे पास चल के गई तो हम मानेंगे क़ि ये तुम्हे नहीं छोड़ रही,
अन्यथा तुम ही इसे नहीं छोड़ रहे हो……..

बस……….बाबा की बात खेदारु के भेजे मे समझ आ गई……………!!

……………………………………………………….ख़त्म……………………………………………………

…………………………………………………….इंदर भोले नाथ………………………………………………..

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तू हर इक शै में बस्ता है

तू हर इक शै में बस्ता है, कहाँ सबको समझ आता है तू
है शुक्र तेरा मेरे साहिब, हर जगह नज़र आता है तू

हालात कभी मुश्किल जब हों, तू हर मुश्किल आसान करे
जब सोच नहीं पाता हूँ मैं, मेरी सोच में बस जाता है तू

मेरी नज़रें तो सीमित हैं, तेरी नज़रों में कुल आलम
जब समझ न मेरी काम करे, मेरा काम वो कर जाता है तू

दुनिआ की नज़रों में कातिल, बदमाश लुटेरे होंगे वो
पर मुझे बचाने मुश्किल में, उन घटों में भी आता है तू

मेरी समझ से दुनिआ बाहर है, बस मैं तो मुहब्बत करता हूँ
नफरत करने वालों में भी, मुझको तो दिख जाता है तू

कविता लिखने की कोशिश में, कभी कलम हाथ में होती है
जब शब्द नहीं मिलते मुझको, आके खुद लिखवाता है तू

‘रवि’ नाम तो अपना लिखता हूँ, पर इतना भी काबिल मैं नही
बस काम वोही मैं करता हूँ, जो मुझसे करवाता है तू

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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

जिदंगी जैसी है यारो; खूबसूरत है

जिदंगी जैसी है यारो; खूबसूरत है,
है ख़ुशी की भी ग़मों की भी जरुरत है,
ना चला है जोड़ जीवन में किसी भी वीर का,
वक़्त के साम्राज्य में किसकी हुकूमत है ?

बचपना, क्या बुढ़ापन,कैसी जवानी है,
तेरी-मेरी, यार सबकी इक कहानी है,
मुस्कुराहट खिल रही थी जिन लबों पे कल तलक ,
आज उन आँखों में भी खामोश पानी है,

था कही जिन आँखों में इक जगमगाता-सा दिया,
वक़्त की राहों में अब वो आँख बूढ़ी है,
जिस तरह हमको जरुरत है सहारों की कही,
उस तरह कुछ मोड़ पर ठोकर जरुरी है,

दोस्त क्या, दुश्मन हैं क्या, सब ही दीवाने हैं,
हैं कभी दुश्मन भी अपने; अपने बेगाने हैं,
हैं कभी खामोश लब, कभी लब पे गाने हैं,
सबकी अपनी एक दुनियां, अपने तराने हैं,

रात की चादर तले जो चाँद भारी है,
सूर्य की दहलीज़ पे वो भी भिखारी है,
हार के, रो के किसने किस्मत सवांरी है,
मुस्कुरा, गम को भुला, दुनियां तुम्हारी है,

हँस के, गा के, तुम बिता लो,जिंदगी के पल हैं जो,
मौत आने पर तो सबकी ही फजीहत है,
जिदंगी जैसी है यारो; खूबसूरत है,
है ख़ुशी की भी ग़मों की भी जरुरत है…

“साथी “

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Sयथार्थ

यथार्थ के धरातल पर
इन लोकाचारो से दूर
जब इन्सान इन्सानों से
हाल ए दिल पुछे तो पायेगा
नितान्त तन्हा है इब्सा
Savita Verma

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बस एक अभिलाषा ... कविता

बस एक अभिलाषा … कविता

जन-जन के ह्रदय को देश-प्रेम जगा दो ,
भगवान् मेरे भारत की तकदीर संवार दो ,

हर युग में आये तुम लेकर भिन्न अवतार ,
हर बार दिया इसे दुःख -क्लेशों से तार ,
इस युग में आकर भी इसकी बिगड़ी बना दो .
भगवन मेरे ………

विरोधियों,दुश्मनों और गद्दारों की भीड़ बड़ी है भारी ,
सुरसा बनकर हर समस्या लग रही है बड़ी भारी .
अपनी अद्वितीय शक्ति से इनको परास्त कर दो .
भगवान् मेरे ……….

तुम्हारी भक्ति के सामान अमूल्य है राष्ट्र -भक्ति ,
प्रत्येक भारत वासी के लिए आवश्यक है देश-भक्ति ,
इस भावना का संचार रक्त की भांति इनमें कर दो .
भगवान् मेरे ……..

जाति – धर्म -रंग -क्षेत्र -भाषा भेद को सब भूल जाएँ ,
मिलकर रहे प्यार से ,परस्पर बैर -भाव सब भूल जाएँ ,
हम सब हैं एक परिवार ,यह सभी को समझा दो .
भगवान् मेरे ……..

महान स्वतंत्रता -सेनानीयों व् महा पुरुषों की कुर्बानी ,
अमल करें सैदेव अपने संत-महात्माओं की अमर-वाणी ,
इनके प्रति श्रद्धा ,सम्मान हर दिल में जगा दो .
भगवान् मेरे ………

हम भारतीओं की एकता ही इसकी आखंडता है ,
हमारा परस्पर प्रेम व् भाईचारा ही इसकी ताकत है.
मेरे देशवासी भाई-बहनों को मिलकर रहना सिखा दो .
भगवान् मेरे ……..

सुनते आये है अपने पूर्वजों से , देश तभी संपन्न होता है,
जब देश में शांति , सदाचार , अनुशासन का पालन होता है,
मेरे देश को भी सुखी और -समृद्ध बना दो .
भगवान् मेरे ……..

हमें देश को चहुँमुखी विकास पथ पर तो है चलाना ,
मगर प्राकृतिक संसाधनों को भी है संजो कर रखना ,
प्रकृति और विकास के मध्य सामजस्य बिठाना सिखा दो .
भगवान मेरे ………

मेरे देश की भलाई ही है मात्र मेरे जीवन की अभिलाषा ,
बड़े ही दीन-हीन होकर व्यथित होकर लगायी है आशा ,
अब देर ना करो , इसकी कठिनाईयों का जल्द उपचार कर दो ,
भगवान् मेरे …….

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हृदय की गाथा .....

निकले थे लेकर अरमानो का पिटारा जीवन के सफर पे
खट्टे मीठे अनुभवों ने खुशियो की झोली खाली कर दी !
भटकते रहे दर – बदर होकर वक़्त के रथ पे सवार
खो गयी मंजिल तो कश्ती लहरो के हवाले कर दी !
जब मिला न कोई दर्द बाटने वाला हमसफ़र हमे राह में
लेकर सहारा तिनको का जिंदगी तूफ़ानो के हवाले कर दी !
हर एक रंज -ओ-गम को रखते रहे समेत कर पहलू में
हृदय की गाथा आंसुओ की स्याही से कागजो पे लिख दी !!

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०___डी. के. निवातियां___०

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भारत को श्रेष्ठ बनाना है

कण कण जिसका क़र्ज़ है हमपर, उस माटी का क़र्ज़ चुकाना है .
एक सोच है एक लक्ष्य, भारत को श्रेष्ठ बनाना है

हब्शी भेड़ियों की लार टपकती
उस अग्नि में लाज सिसकती
उस सिसकी की करूँ क्रंदना
निर्वस्त्र हो गयी मानव वेदना
उस दानव के पंजो से दामिनी का दमन बचाना है
एक सोच है एक लक्ष्य, भारत को श्रेष्ठ बनाना है

बिन विद्या वो है अपंग
सहमत नहीं कोई चलने को संग
नेत्रों से बहे जब अविरल धारा
कलम बनेगी उसका सहारा
विद्या का द्वीप जलाना है तो हर बेटी को पढ़ाना है
एक सोच है एक लक्ष्य, भारत को श्रेष्ठ बनाना है

कट्टरता है देश का दुश्मन
उसके चपेट में युवा मन
अपने लोभ में विवश कुछ नेता
एक को अनेक क्यों कर देता
तिरंगे का रंग बचाना है तो आपस की दुरी मिटाना है
एक सोच है एक लक्ष्य, भारत को श्रेष्ठ बनाना है

प्रेम स्वभाव है प्रकृति अपनी
मेल भाव है संस्कृति अपनी
कई धर्म है, कई जात है, कई राज्य कई भाषा
सर्व हितानी सर्व सुखानी है , है यह परम अभिलाषा
अनेकता में एकता सार्थक करना है तो, भारतीयता ही पहचान बनाना है
एक सोच है एक लक्ष्य, भारत को श्रेष्ठ बनाना है

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समर पथ

जिवित है प्राणी
चल रहा धीमें-धीमें
हरदम हरपल चलती है
परछाई उसके पीछें-पीछें
राह कठिन पा जाता है
खुदा को दोषी ठहराता है
जान वचाने की खातिर
वो क्या-क्या खेल रचाता है
अमृत समय मे लाने को
दीक्ष हला विष पीता है
खुद को मानव कहता है
और आगे वढ़ता रहता है।
-:निर्देश कुदेशिया

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नज़्म - इंक़लाब / ज़ीस्त

मुझसे इस वास्ते ख़फ़ा हैं हमसुख़न मेरे
मैंने क्यों अपने क़लम से न लहू बरसाया
मैंने क्यों नाज़ुक-ओ-नर्म-ओ-गुदाज़ गीत लिखे
क्यों नहीं एक भी शोला कहीं पे भड़काया

मैंने क्यों ये कहा कि अम्न भी हो सकता है
हमेशा ख़़ून बहाना ही ज़रूरी तो नहीं
शमा जो पास है तो घर में उजाला कर लो
शमा से घर को जलाना ही ज़रूरी तो नहीं

मैंने क्यों बोल दिया ज़ीस्त फ़क़त सोज़ नहीं
ये तो इक राग भी है, साज़ भी, आवाज़ भी है
दिल के जज़्बात पे तुम चाहे जितने तंज़ करो
अपने बहते हुए अश्कों पे हमें नाज़ भी है

मुझपे तोहमत लगाई जाती हैं ये कि मैंने
क्यों न तहरीर के नश्तर से इंक़लाब किया!
किसलिए मैंने नहीं ख़ार की परस्तिश की!
क्यों नहीं चाक-चाक मैंने हर गुलाब किया!

मेरे नदीम! मेरे हमनफ़स! जवाब तो दो-
सिर्फ़ परचम को उठाना ही इंक़लाब है क्या?
कोई जो बद है तो फिर बद को बढ़के नेक करो
बद की हस्ती को मिटाना ही इंक़लाब है क्या?

दिल भी पत्थर है जहां, उस अजीब आलम में
किसी के अश्क को पीना क्या इंक़लाब नहीं?
मरने-मिटने का ही दम भरना इंक़लाब है क्या?
किसी के वास्ते जीना क्या इंक़लाब नहीं?

हर तरफ़ फैली हुई नफ़रतों की दुनिया में
किसी से प्यार निभाना क्या इंक़लाब नहीं?
बेग़रज़ सूद-ओ-ज़ियाँ की रवायतों से परे
किसी को चाहते जाना क्या इंक़लाब नहीं?

अपने दिल के हर एक दर्द को छुपाए हुए
ख़ुशी के गीत सुनाना भी इंक़लाब ही है
सिर्फ़ नारा ही लगाना ही तो इंक़लाब नहीं
गिरे हुओं को उठाना भी इंक़लाब ही है

तुम जिसे इंक़लाब कहते हो मेरे प्यारों
मुझसे उसकी तो हिमायत न हो सकेगी कभी
मैं उजालों क परस्तार हूं, मेरे दिल से
घुप्प अंधेरों की इबादत न हो सकेगी कभी

ख़फ़ा न होना मुझसे तुम ऐ हमसुख़न मेरे
इस क़लम से जो मैं जंग-ओ-जदल का नाम न लूं
ये ख़ता मुझसे जो हो जाये दरगुज़़र करना
जि़क्र बस ज़ीस्त क करूं, अजल का नाम न लूं

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बहारें थम गई - शिशिर "मधुकर"

बहारें थम गई फिर से लो मौसम मलिन आया
कलह से क्या मिला तुमको ना मैंने कुछ पाया
जिंदगी चल रही थी जो सब को साथ में लेकर
बिना समझे ही बस तुमने उसको मार दी ठोकर
बड़ी मुश्किल से कोई इस जहाँ में पास आता है
जिससे मिल बैठ के गम छोड़ इंसा मुस्कराता है
मगर तुमको मेरी कोई ख़ुशी अच्छी नहीं लगती
मेरी रुसवाई करने में तुम बिलकुल नहीं थकती
तुम्हारे वार सह सह कर मैं अब तक भी जिन्दा हूँ
कटे पर से जो ना उड़ पाए अब बस वो परिंदा हूँ
मेरे जीवन में जैसे सब ने मिलकर जहर बोया है
मेरा हर रोम रोम छलनी हो बिन आंसू के रोया है.

शिशिर “मधुकर”

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क्यूँ है ?

सुबह उगना ही है तो शाम को ढलता क्यूँ है,
किस से चाहत है बता सूर्य तू जलता क्यूँ है,

क्या है ख्वाहिश तेरी क्या दूर बहुत मंजिल है,
रोज तू इतनी सुबह घर से निकलता क्यूँ है,

दिल तू कब समझेगा वो हो नहीं सकता तेरा,
तू उसकी चाह में पल-पल यूँ पिघलता क्यूँ है,

सच से वाकिफ हूँ मैं कोई और उसकी चाहत है,
स्वप्न झूठे तू दिखा मुझको यूँ छलता क्यूँ है,

प्यार और दोस्त तो इंसान हैं मौसम तो नहीं,
आये दिन फिर यहाँ इंसान बदलता क्यूँ है,

रिश्ते-जज्बात वफ़ा-प्यार क्या सस्ते हैं बहुत,
पैसे पे लोगों का ईमान फिसलता क्यूँ है,

जो भी बेईमान है, झूठा है, भ्रस्ट लोभी है,
फूल प्रगति का उनके घर पे ही खिलता क्यूँ है,

सब तो मशरूफ हैं जीवन की आपा-धापी में,
‘ओम’ बस एक तू रह-रह के मचलता क्यूँ है,

झूठ-अन्याय के अंधियारे में खुश हैं सारे,
सच की सम्मा तू जला राह पे चलता क्यूँ है !!!

“साथी ”

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ग़ज़ल(हम पर सितम वो कर गए)

हम आज तक खामोश हैं और वो भी कुछ कहते नहीं
दर्द के नग्मों में हक़ बस मेरा नजर आता है

देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए
अब क़यामत में उम्मीदों का सवेरा नजर आता है

क्यों रोशनी के खेल में अपना आस का पँछी जला
हमें अँधेरे में हिफाज़त का बसेरा नजर आता है

इस कदर अनजान हैं हम आज अपने हाल से
हकीकत में भी ख्वावों का घेरा नजर आता है

ये दीवानगी अपनी नहीं तो और फिर क्या है मदन
हर जगह इक शख्श का मुझे चेहरा नजर आता है

ग़ज़ल(हम पर सितम वो कर गए)
मदन मोहन सक्सेना

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शहीदे आजम शहीद भगत सिंह ..... लेजेंट ऑफ़ फैन भगत सिंह 2016

भगत सिंह हमारे देश के सरताज़.
याद सताती है मुझे उनकी आज.
सच कहु तो (शहीदे आजम शहीद भगत सिंह) जैसा आज इस देश में ही नही बल्कि पूरी दुनिया में कोई नही है,
(शहीदे आजम शहीद भगत सिंह) कुछ लोग कहते है की वो भगवन के अवतार थे |
मगर मुझे लगता है की वो भगवन ही थे, (क्योंकि जैसे श्री कृष्ण भगवान ने लोगो को कंश से बचाया था,
वैसे ही मेरे आदर्श शहीदे आजम शहीद भगत सिंह जी ने भारत के वंश को बचाया था) कितनी भाग्यशाली थी वो माँ,
जिसकी कोख से ऐसे अवतार ने जन्म लिया,
(शहीदे आजम शहीद भगत सिंह) जी ने अपने घर का ही नही बल्कि पुरे देश का नाम रोशन किया है |
आज हम कभी भी किसी भी क्रन्तिकारी के बारे में सोचते है, तो सबसे पहले हमारे दिलो दिमाग में
एक ही महान पुरुष की तस्वीर दिखाई देती है और वो है (शहीदे आजम शहीद भगत सिंह) क्योंकि वो एक ऐसे महान इंसान थे
जिन्होने अपनी जिंदगी से ज्यादा देश को चाहा था, वो एक ऐसे महान इंसान थे, जिन्हे आज के नौजवान अपना आदर्श मानते हुए गर्व महसूस करते है |
जिन्हे मैं खुद अपना आदर्श मानता हु वो हमारे बीच चाहे भले ही न हो, मगर वो हमारे दिलो में, दिमाग में, सोच में. विचार में हमेशा थे, है और हमेशा रहेंगे, पर पता नही क्यूँ की (शहीदे आजम शहीद भगत सिंह) जी और उनके साथियों का जो देश आजाद करवाने का सपना था, वो कहि न कहि अधूरा सा लग रहा है, जो उन वीर सपूतों के दिमाग में जो इस देश की सुन्दर छवि बनी हुई थी वो कहि न कहि धुंधली सी दिखाई दे रही है क्योंकि उन्होंने तो एक गुलाम भारत देश को सोने की चिड़िया में बदल दिया था, उन्होंने अपने देश के लिए जो कुर्बानी दी थी, आज की पीढ़ी उस कुर्बानी का महत्व समझ नही पा रही है, हमारा देश भले ही अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त हो गया हो, मगर हमारा देश भ्र्ष्टाचार, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज़ प्रथा, गुंडागर्दी इन परेशानियों से ग्रस्त है, हमारे देश की हर बेटी घुट – घुट कर जी रही है, कोई न कोई लड़की किसी न किसी जानवर का शिकार हो रही है आज जब भी कभी हम सुबहः अख़बार उठा कर देखते है तो कोई न कोई बेटी फांसी लगाकर, दहेज़ के चक्कर में जला कर या दुष्कर्म का शिकार हुई दिखाई देती है, किसी और देश के ही नही बल्कि हमारे देश के दीमक ही हमारे देश को खोखला कर रहे है, जिस उम्र में (शहीदे आजम शहीद भगत सिंह) जी ने अपने देश के ऊपर जान न्योछावर की थी उस समय वो 23 वर्ष के थे, और आज के 18 वर्ष के नौजवान ही मर्दा पीते हुए, गुटका पान मसाला खाते हुए, सड़क दुर्घटना में मरे हुए दिखाई देते है हमे उनकी कुर्बानी का महत्व समझना होगा,
(शहीदे आजम शहीद भगत सिंह) जी …
जिन्हे हमारे देश की हर महिला और हर बुजुर्ग अपना बेटा,हर लड़की अपना भाई कहते हुए गर्व महसूस करती है ऐसे थे मेरे आदर्श (शहीदे आजम शहीद भगत सिंह) जी आइये हम प्रण लेते है की हम उनके दिखाए हुए रास्ते पर चलेंगे और हर लड़की को दूसरे की घर की इज़्ज़त समझने से पहले हम उसे अपने घर की इज़्ज़त समजेंगे |
(जय हिन्द, जय भारत)

लेखक :- साहिल शर्मा s/o मनोज शर्मा
संपर्क :- +919896976601,
+918570066412

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जिंदगी के चार पहिये... लेजेंट ऑफ़ फैन भगत सिंह 2016

1) पहला पहिया – माँ बाप के संस्कार एक अच्छा परिवार और बहन भाई का प्यार यही होता है जिंदगी का पहला पहिया |
2) दूसरा पहिया – घर की इज़्ज़त, माता पिता का आदर, गुरु का सम्मान,
दुनिया में अपनी एक खुद की पहचान आन, बान और शान इनको करो प्रणाम
यही होता है जिंदगी का दूसरा पहिया |
3) तीसरा पहिया – स्वस्थ शरीर, खून पसीने की कमाई, इज़्ज़त की रोटी
छोटे से परिवार ने मिल बाँट कर खाई यही होता है जिंदगी का तीसरा पहिया |
4) चौथा पहिया – पति और पत्नी में एक अटूट विश्वास, इन दोनों को इस जीवन में एक दूसरे का है सहारा
पति पत्नी के लिए सागर का किनारा आप को अच्छी सिख मिले यही उद्देश्य है हमारा |

लेखक :- साहिल शर्मा s/o मनोज शर्मा
संपर्क :- +919896976601,
+918570066412

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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

मुझे भी जगमगाना है ...

हो आँखों में भले आँसू, लबों को मुस्कुराना है,
यहाँ सदियों से जीवन का,यही बेरंग फ़साना है,
है मन में सिसकियाँ गहरी,दिलों में दर्द का आलम,
मगर हालात के मारे को महफ़िल भी सजाना है,

नहीं मंजिल है नजरों में, बहुत ही दूर जाना है,
थके क़दमों को साहस को,हर इक पल ही मनाना है,
खुद ही गिरना-सम्भलना है,खुद ही को कोसना अक्सर,
खुद ही को हौसला दे कर, हर इक पग को बढ़ाना है,

तेरी नफरत से भी उल्फत न जाने कर क्यूँ बैठे हम,
तेरी चाहत को भी हमको तो इस दिल से मिटाना है,
अजब ये बेबसी मेरी, हूँ मैं मजबूर भी कितना,
भुला जिसको नहीं सकता,उसी को बस भुलाना है,

अभी उम्मीद कायम है,है जब तक जिंदगी बाकी,
किया खुद से जो वादा है,वो वादा तो निभाना है,
अभी गर्दिश का आलम है, मैं हूँ टूटा हुआ तारा ,
सहर के साथ बन सूरज, मुझे भी जगमगाना है …

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नादान हूँ .......

प्यार तुम्हारा उसे मुबारक
जिसके लिए रखा संभाल के !
कुछ पल अर्पण कर दो तुम
हमारे लिए स्नेह भरे दुलार के !!

नजरे इनायत करो न करो
बस इतना हम पर कर्म कर दो !
रख कर सर अपने पहलू में
अपने आँचल की छाँव कर दो !!

इरादे अपने सर्वथा नेक है
गलत समझकर भर्मित न हो !
सुकून के पल कुछ ढूंढते है
दिल बहले नजर गुस्ताख़ न हो !!

जानना चाहो तो दिल से पूछ लो
तुम्हारी ह्या का कितना कद्रदान हूँ !
कर देना माफ़ अगर शरारत हो
तुम्हारी रिआयत में हो गया नादान हूँ !!

ये इल्तिजा, ये गुजारिश है
हमारी भावनाओ को दिल से पढ़ना !
करना अपने ह्रदय में अंतर्द्वंद
फिर किसी फैसले पर तुम आगे बढ़ना !!

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………डी. के. निवातिया…..

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ऐ सितमगर ||ग़ज़ल||

तुमबिन ज़िंदगी का हर ख्वाब अधूरा है |
दुनिया में एक तू ही सहारा है |

ऐ सितमगर , तू न कर इतना सितम,
तड़पते दिल ने तुम्हें पल-पल पुकारा है |

जी सके न मर सके तुमसे बिछड़ के ,
तेरी तस्वीर देख-देख हर रात गुजारा है|

खुदा जाने क्या बात है आज भी ,
तुमसे मिलने का ईरादा क्यों हमारा है |

जाने क्यों समझने लगे है लोग मुझे पागल ,
और कहने लगे है तू आशिक आवारा है |

dushyant kumar patel

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हाथ मलते रहे......

जिंदगी की राहो में ठोकरे खाते रहे, चलते रहे !
कदम – कदम पर गिरते रहे फिर सम्भलते रहे !!
दास्तान -ऐ- जिंदगी शाम की तरह ढलती गयी !
उम्र अपनी मजिल पा गयी हम खड़े हाथ मलते रहे !!

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D. K. Nivatiya.

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सच्चे प्रेमियों को समर्पित

तुम जिसे ठुकरा गयी, वो अब जग को रास आ रहा है,
जो सुना तुमने नहीं वो धून ज़माना गा रहा है,

तुमने बोला था न बरसेगी जहाँ एक बूँद भी कल,
उस जमीं के नभ पे इक्छित काला बादल छा रहा है,

रात के डर से अकेला तुमने छोड़ा था जिसे कल ,
उसकी खातिर आज सजकर, सूर्य का रथ आ रहा है,

काँच का टुकड़ा समझकर फेंक आई तुम जिसे थी,
पैसों के बाजार में हीरा बताया जा रहा है,

हार की अपनी वजह, जिसको बता आई कभी तुम,
आज हर कोई उसे पारस समझ अपना रहा है,

तुम हकीकत में न कर पायी कभी सम्मान जिसका,
अच्छे अच्छों के ह्रदय का वो सदा सपना रहा है,

वो अभागा था या तुम हो,स्वयं ही ये निर्णय करो तुम,
आज तुम बंजर हो, उसका दिल सदा गंगा रहा है …

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पता बदला है हमने..

पता बदला है हमने, अपने रहने का मेरे यारों,

के अब घर छोड़ के अपना, हम उनके दिल में रहते हैं,

कोई चिठ्ठी, कोई खत गर मेरा आये तो ऐ यारों,

पढ़ा देना उन्हें, हम दिल में बैठे सुनते रहते हैं।

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" निर्वाह घर का "

इस घर के निर्वाह के कारण………..
आओ करें हम दोनों , मिलकर काम !!

परेशानियों के बोझ तले दबे इस जीवन का……
आओ करें हम दोनों मिलकर के निर्माण !!

आओ इस जीवन की मजबूत बनाये नींव………
मैं बन जाऊं इज़्ज़त तुम्हारी , तुम बनो मेरा सम्मान !!

खर्च है इस घर में हर वक़्त देखो कितने……….
बच्चे , पढाई , परिवार और अथिति का सम्मान !!

आओ मिलकर के बाटें थोड़ा-थोड़ा बोझ………
इस जीवन पथ पर हम दोनों है एक समान !!

भाग दौड़ भरी इस दुनिया में , तुम अकेले क्यों हो परेशान….
उम्र पड़ी है ! सारी हम भी कर लेंगे कभी आराम !!

पढ़ा लिखा मैने भी बोलो तो किस काम का……….
नहीं चाहिए मुझे ऐसा जीवन, जो खत्म हो बिन पहचान का !!

चलो मेरे हाथो में दो , अब ये घर निर्वाह की डोर…….
और तुम थामे रखना देखो , भविष्य पूर्ति की ये कमान !!

रचनाकार : निर्मला ( नैना )

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सविता वर्मा की 3 कविताएं

सविता वर्मा की कविताएं
1
खुद की तलाश मे भटकती दर-बदर
मिल जाए मकाम, इस आस में खोजूं इधर-उधर
भटक रही तन्हा खर्च करती खुद को
तुमको सुन रही हूं, तुमको गुन रही हूं
सुन लूं, गुन लूं, तब तुमसे पुछूं
इतना ही है अम्बर मेरा, इतनी ही है जमीं मेरी
खर्च सुबह खर्च शामें इतनी ही है कीमत मेरी

2
भावना शून्य चेहरों पर
तमाम कलाकारी इस मन की
शब्दों से घोलते हैं रस
आखों की बेईमानी इस मन की
छोटे से पोखरे की छोटी सी मछली हम
समन्दर सा कौतूहल इस मन का
भाव विहीन अम्बर में
सारी कशीदाकारी इस मन की
अभिलाषा है अर्पण कर दूं
सारी अस्थिरता इस मन की
इस सहज जीवन में
सारा खोखलापन इस मन का
क्यु आते तुम ख्यालों में थम थम के
थोडा ज्यादा फिर और ज्यादा आते हो याद तुम
हृदय में उतरते-उतरते आत्मा को भिगोने लगे तुम
ये शिद्दत, ये उद्विग्नता,ये विडम्बना
क्या यही हो मेरे हिस्से में तुम
3
नजर न लग जाये नजर को जिससे देखते हो तुम
निखर जाता है चेहरा जब निहारते हो तुम
मन के एक एक तार को महका देते हो तुम
ये पवित्रता ये प्रेम,ये तड़प
क्या यही हो मेरे हिस्से में तुम
मेरे ही रहना सदा ये चाहत हो तुम
उडते हुए बादल को कैद करने की तम्मना हो तुम
पूरी न हो सके ऐसी दुआ हो तुम
ये आशा, ये निराशा, ये आरजू
क्या यही हो मेरे हिस्से में तुम

ये सब केवल मेरे लिए है
या अंशमात्र भी तुम्हारे लिए भी
चांदनी बिखेरती रातो में हम मिले
मन का वो चहकना
खिलखिला कर वो हंसना
ये सब केवल मेरे लिए है
या अंशमात्र भी तुम्हारे लिए भी
मन की गिरह खुलने को बेताब
जी रहा होता जी लेने का जज्बा
धडकनें हो जाती हैं तेज
ये सब केवल मेरे लिए है
या अंशमात्र तुम्हारे लिए भी
छोड देते, तोड़ देते, मेरी दी हुइॅ बंदिशे
ये रीतियां ये परम्पराएं
मचल जाता तुम्हारा भी मन
ये सब केवल मेरे लिए है
या अंशमात्र तुम्हारे लिए भी
खुशबू की डिबिया की तरह
महकती हूं, गमकती हूं
तुम्हारे एहसास से
ये सब केवल मेरे लिए है या अंशमात्र तुम्हारे लिए भी  

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माँ मेरी माँ..........लैजेंट ऑफ़ फैन भगत सिंह 2016

माँ मुझसे मत पूछ की मुझे क्या नजर आ रहा है |
बस तुझमे ही अपना खुदा नजर आ रहा है |
तूने रखा जब मेरे सर पर वो दोनों हाथ , तो
सारे जहाँ की कामयाबी थी मेरे साथ
तूने खिलाई मुझे अपने हाथो से रोटी
तुही है सारे जहाँ का सबसे प्यारा मोती ……….
तुही मेरी जिंदगी तू ही मेरी माँ
मेरा बस चले तो तेरे कदमो में बिछा दू ये जहाँ
तुझ जैसा इस दुनिया में मिलेगा कोई कहाँ तूने मुझे जन्म दिया तुही मेरी माँ ………..
मेरे हसने पर तू हसी मेरे रोने पर तू रोई
मुझसे बड़ी ना ख़ुशी है तेरी कोई
मुझे ठण्ड से बचाने के लिए तू खुद सर्दी में सोई
मेरी मौत के सामने तू खुद खड़ी हो गयी ………..
माँ मुझसे मत पूछ की मुझे क्या नजर आ रहा है |
बस तुझमे ही अपना खुदा नजर आ रहा है |
सारी रात सारा दिन तुझको ही मैं याद करूँ
तू खुश रहे मेरी माँ
मैं रब से ये फरियाद करूँ …………
तेरे बिना मेरे जिंदगी अधूरी
तू ही मेरी ख़्वाहिश पूरी.
एक पुतले की जान है तू …….
खुशियों का जहान है तू
मेरी माँ महान है तू …………
अपने बेटे की नजरो में इसलिए भगवान है तू .
तेरी ममता की छाओं में मुझे पेड़ से भी अच्छी छाँव मिली
मैं बहुत किस्मत वाला हूँ की मुझे तुझ जैसी माँ है मिली ……….
हमारे घर की लक्ष्मी , हमारे घर की जान है तू , मेरे घर की पहचान है तू
मेरी माँ महान है तू …….
मुझ पर हक़ है तेरा क्यूंकि तू है मेरी माँ
तुझसे अच्छा कोई नही , तू ही मेरा जहाँ
हर दुःख सुख की साथी तू
हमारे दीपक की बाती तू ………
साहिल तेरी कहानी लिखे …….
तेरे इन संस्कारो पर धीरे धीरे चलना वो सीखे
मैं करता आप पर विश्वास
मेरे खून की रगो में माँ के नाम का हर साँस
पापा आपके जीवन साथी.
आपकी ये प्यारी सी जोड़ी . लगती जैसे दीपक और बाती
मुझको तू चाहे ……….मुझको ही तू याद करे.
मेरे जीवन में खुशियों की बरसात करे
मैं हर लम्हा तेरी याद में रोऊ
मैं आखरी साँस तक तेरी ही गोद में सोऊ…………
मेरी भी मिल जाये जिंदगी तुझको
तुझमे खुदा नजर आता है मुझको………..
दिल करता है मैं तेरी याद में खो जाऊ
पूरी जिंदगी के लिए तेरी गोद में सो जाऊ
तेरी ममता का साया हूँ ………..
इस दुनिया को देखने तेरी कोख से आया हूँ |

लेखक :- साहिल शर्मा S/o मनोज शर्मा
संपर्क :- 9896976601
8570066412
9812207400

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हर शाम

हर शाम,
लिए दो प्याले जाम,
एक तेरे नाम, एक मेरे नाम,
याद आती है, कुछ मुलाकातें,
और कुछ साथ गुज़ारी शाम……….

चले थे जिन रस्तो पर,
लिए हाथों मैं हाथ,
बुने थे कुछ सपने,
सतरंगी साथ साथ,
मेरे सपने तो हैं, मेरे पास,
तुमने ही कर दिए, किसी और क़े नाम……..

दिल दिल होता है, कोई ज़मीन नहीं,
कभी कर दी इसके नाम, कभी उसके नाम,
मेरा दिल तो है, एक परबत,
अडिग, अचल, तेरे नाम, बस तेरे नाम……….

शिकवा गिला किस रिश्ते मैं नहीं होता,
क्या तकरार मैं प्यार और प्यार मैं तकरार नहीं होता,
क्या रूठने क़े बाद, मान जाने मैं मज़ा नहीं होता,
तुम जो रूठी, तो सारी दुनिया मैं प्यार मेरा, हो गया बदनाम……

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माँ मेरी माँ

माँ मुझसे मत पूछ की मुझे क्या नजर आ रहा है |
बस तुझे ही अपना खुदा नजर आ रहा है |
तूने रखा जब मेरे सर पर वो दोनों हाथ , तो
सरे जहाँ की कामयाबी थी मेरे साथ
तूने खिलाई मुझे अपने हाथो से रोटी
तुही है सरे जहाँ का सबसे प्यारा मोती ……….
तुही मेरी जिंदगी तू ही मेरी माँ
मेरा बस चले तो तेरे कदमो बिछा दू ये जहाँ
तुझ जैसा इस दुनिया में मिलेगा कोई कहाँ तूने मुझे जन्म दिया तुही मेरी माँ ………..
मेरे हसने पर तू हसी मेरे रोने पर तू रोई
मुझसे बड़ी ना ख़ुशी है तेरी कोई
मुझे ठण्ड से बचाने के लिए तू खुद सर्दी में सोई
मेरी मौत के सामने तू खुद खड़ी हो गयी ………..
माँ मुझसे मत पूछ की मुझे क्या नजर आ रहा है |
बस तुझे ही अपना खुदा नजर आ रहा है |
सारी रात सारा दिन तुझको ही मैं याद करूँ
तू खुश रहे मेरी माँ
मैं रब से ये फरियाद करूँ …………
तेरे बिना मेरे जिंदगी अधूरी
तू ही मेरी ख़्वाहिश पूरी.
एक पुतले की जान है तू …….
खुशियों का जहान है तू
मेरी माँ महान है तू …………
अपने बेटे की नजरो में इसलिए भगवन है तू .
तेरी ममता की छाओं में मुझे पेड़ से भी अच्छी छाँव मिली
मैं बहुत किस्मत वाला हूँ की मुझे तुझ जैसी माँ है मिली ……….
हमारे घर की लक्ष्मी , हमारे घर की जान है तू , मेरे घर की पहचान है तू
मेरी माँ महान है तू …….
मुझ पर हक़ है तेरा क्यूंकि तू है मेरी माँ
तुझसे अच्छा कोई नही , तू ही मेरा जहाँ
हर दुःख सुख की साथी तू
हमारे दीपक की बाती तू ………
साहिल तेरी कहानी लिखे …….
तेरे ही संस्कारो पर धीरे धीरे चलना वो सीखे
मैं करता आप पर विश्वास
मेरे खून की रगो में माँ का हर साँस
पापा आपके जीवन साथी.
आपकी ये प्यारी सी जोड़ी . लगती जैसे दीपक और बाती
मुझको तू चाहे ……….मुझको ही तू याद करे.
मेरे जीवन में खुशियों की बरसात करे
मैं हर लम्हा तेरी याद में रोऊ
मैं आखरी साँस तक तेरी ही गोद में सोऊ…………
मेरी भी मिल जाये जिंदगी तुझको
तुझमे खुद नजर आता है मुझको………..
दिल करता है मैं तेरी याद में खो जाऊ
पूरी जिंदगी के लिए तेरी गोद में सो जाऊ
तेरी ममता का साया हूँ ………..
इस दुनिया को देखने तेरी कोख से आया हूँ |

लेखक :- साहिल शर्मा S/o मनोज शर्मा
संपर्क :- 9896976601
8570066412
9812207400

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"माँ "

छोटी छोटी आँखो से दुनियाँ देखने लगा ।
छोटे हाथों से उँगलियाँ पकड़ ने लगा ।
मेरे कदम और भी मज़बूत हो गये ,
माँ का हाथ पकड़ के जब चलने लगा ।

मेरे कदम अकेले ही संभल ने लगे ।
जब अपने ही पेरौ पर चलने लगे ।
माँ मेरी स्कूल रखने फिर भी आई ,
जब खुद ही बेग अपना उठाने लगे ।

मुझको पढाया लिखाया आदमी बनाया ।
दुसरो के काम आ सके वो इंसान बनाया ।
जब जब मूझसे कोई गलती हो जाती ,
गले से लगा कर प्यार से समझाया ।

वक्त की रेत माँ से दुर करने लगी ।
जबसे बीवी मेरा डिब्बा बनाने लगी ।
बीवी का नमकीन सा बना खाना खाया तो ,
माँ के हाथों की बनी रोटी याद आने लगी ।

वक्त सारा ऑफीस मे लगा रेहता था ।
माँ का तावीज गले मे ही रहा करता था ।
मैं लौट कर जब तक घर ना आ जाऊ ,
माँ का सर सज़दे मे ही पडा रेहता था ।

पत्नि की आँखो मे चुभने लगी मेरी माँ ।
केहती हे की तंग करने लगी तेरी माँ ।
माँ को मेरे सर का बोज समझने लगा ,
तो केह दिया मेने अपने घर जा तु माँ ।

जवानी अब बुढापे मे बदल ने लगी ।
मुझको भी मेरी माँ की उम्र लगने लगी ।
जब पुरी जवानी ढल गई बुढापे मे ,
मेरी औलाद भी अंदाज़ बदल ने लगी ।

मेरे बच्चे मुजे एसे तड़पाने लगे ।
माँ के साथ किये सुलूक याद आने लगे ।
मेरी कोई बात नही सुनी उन्होने ,
मुझको भी मेरी माँ के घर ले जाने लगे ।

माँ ने जब देखा तो मुझपे रहम आया ।
उसने कहा के लो मेरा बेटा लौट आया ।
माँ की आँखों से निकले ईस तरहा आँसु ,
आँखों मे जेसे मेरा बचपन भर आया ।
-एझाझ अहमद

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बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

सारी बातें सुनी-सुनायीं !!

सारी बातें सुनी-सुनायीं,
किन बातों पर यकीं करें, और
कौन सी बातें, बात बनायीं !
सारी बातें सुनी-सुनायीं !!

इसने कहा कुछ, उसने सुना कुछ,
इसने किया कुछ, उसको लगा कुछ।
जिसको जैसा लगा घुमाया,
अपनी रोटी खूब पकायी !
सारी बातें सुनी-सुनायीं !!

ऐसी बातें सुनकर हमने,
उसको ही सच मान लिया।
औरों ने उकसाया हमको,
और हमने बस ठान लिया।
इसको मारा, उसको काटा,
घर-घर हमने आग लगायी !
सारी बातें सुनी-सुनायीं !!

क्या हम में अब समझ नहीं है,
क्या ख़ुद की कोई सोच नहीं।
या फिर इन्सां होने का,
अब हमको कोई गर्व नहीं।
किसी को बेवा, कोई यतीम,
हर इक आँखें खून रूलायीं !
सारी बातें सुनी-सुनायीं !!

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किन बातों पर यकीं करें, और
कौन सी बातें, बात बनायीं !
सारी बातें सुनी-सुनायीं !!
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कैसे भुला दू.....

कैसे भुला दू

तुम संग बिताये वो हसीँ पल
जिनमे न रात का पता था
न दिन की होती कोई खबर
उन यादो को मैं कैसे भुला दूँ !!

घुमड़ते बादलो के संग – संग
तेरा घनी जुल्फों का लहराना
सावन की फुहारों के संग-संग
तेरा वो प्यार का बरसाना,
वो हसी पलो मै कैसे भुला दूँ !!

कार्तिक की काली सर्द रातो में
टक – टक सितारों का गिनना
कोहरे की चादर में लिपटी सुबह
दीद्दार के इन्तजार में ठिठुरना
उन सर्द यादो को कैसे भुला दूँ !!

वसंत में चढ़ता फाग का रंग
फूलो से लहलाने का तेरा ढंग
कलि सा चटकता अंग – अंग
मन की एकग्रता करता भंग
सौंदर्य का वो रूप कैसे भुला दूँ !!

!
!
!
डी. के. निवातियां___!!!

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ख़ुदगर्ज़ी

सिमट गयी है ज़िंदगी इंसा की अपनी चारदीवारी में

अपने ग़म के अलावा कोई और बात चौखट अब पार नहीं करती

कितनी ख़ुदगर्ज़ी है देखो उसकी फ़िदरत में

कि किसी की मुश्किलें उसकी रूह को बेज़ार नहीं करती

होगी जिस रोज़ क़दर उसे अपने रिश्तों की

कही वक़्त की आँधी सब कुछ तबाह ना कर दे

इतना ग़ुरूर अच्छा नहीं गर समझ ले,क्यूँकि

वक़्त की मार कभी कोई आवाज़ नहीं करती

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"अपने आँसूओं को एसे ही बहाया मत कर"

अपने आँसूओं को एसे ही बहाया मत कर ।
जिन्हें धूप पसंद हो, उनपर साया मत कर ।
उसे तो आदत हैं बार बार धोका देने की ,
तु जानबूझकर उसके धोके खाया मत कर ।
अपने भी डाल देते हैं अब जख्मों पर नमक ,
तु सबको अपने घाव यू दिखाया मत कर ।
जिसको प्यार के कसमों की अहमियत ना हो ,
तु एसे बेवफा के वादो को निभाया मत कर ।
हर चीज़ तेरी उसने जलाकर राख कर दी हैं ,
उसकी निशानीसे खुद को तु जलाया मत कर ।
वो तो तुझे भुल गयी ,तु भी उसे भुल जा ;
याद मे उसकी खुद को तु तड़पाया मत कर ।
-एझाझ अहमद

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चंद शेर आपके लिए

चंद शेर आपके लिए

एक।

दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता है
जब दर्द को दबा जानकार पिया मैंने

दो.

वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है

तीन.

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है

चार.

जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

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