शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

रचना

यह भी एक सिीधी सिधी रचना है
सिधी हाेते हुए यही रचना नही है बल्की एक चना है ।
रचना हमकाे रचाती है
रचना ताे हमकाे नचाती है ।
अबके वर्ष रचना भी
चना बन जाती है
रचनाके साथ अर्चना भी अाजाती है ।

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जहर ...... ( मुक्तक )

कैद हुआ तो क्या पिंजरे में बंद परिंदा सब्र रखता हैं !
छोटा हुआ तो क्या वो भी आसमानो की खबर रखता है !!
!
सर्प जाति को जाने क्यों बदनाम करती ये दुनिया !
नेताओ को देख लो हर कोई जुबान से जहर उगलता है !!

डी. के. निवातियाँ _______@@@

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असहिंष्णुता के सपने

कुछ बुद्धिजीवियों को बढ़ती असहिंष्णुता के सपने आ रहे हैं
जिससे हुए व्यथित वो सरकारी सम्मान लौटा रहे हैं
एक दादरी हिंसा पे इनकी आत्मा रोती है
कश्मीरी हिन्दुओं की इन्हे चिंता ना होती है
जब पाक, बांग्लादेश में हिन्दू गए थे मारे
कोई इनसे पूछे कहाँ छुfप गए थे ये सारे
आतंक के साए में जब पंजाबी मर रहे थे
ये सारे बुद्धिजीवी तब यहाँ क्या कर रहे थे
असम की जातीय हिंसा पे इनकी आत्मा ना रोइ
कहाँ तब सो गए थे सारे जरा पूछे तो इनसे कोई
नक्सली जब देश को नुकसान पहुँचा रहे थे
यही बुद्धिजीवी तब उन्ही के गीत गा रहे थे
तस्लीमा नसरीन पर जब हमला हो रहा था
इन सबका स्वाभिमान तब कहाँ सो रहा था
सलमान रुश्दी की किताब पर जब देश में रोक लगाई थी
अभिव्यक्ति की आज़ादी की तब याद किसी को ना आई थी
सिखों के कत्ले आम पर कहाँ थे ये सिपाही कलम के
तब क्यों ना झनझनाए तार संवेदना के मन के
हिन्दू जो पशुबलि दें तो बदनाम ये करते हैं
इनके दिल कभी ना पसीजे जब लाखों बकरे मरते हैं
मी नाथूराम गोडसे बोलतोय नाटक पर जब बैन था लगवाया
कला की आज़ादी का तब इन्हे ख़याल भी ना आया
अपना असल चेहरा ये खुद ही दिखाते हैं
करते हैं वही छेद जिस थाली में ये खाते हैं
इनकी इन हरकतों पे अतः ताव तुम ना खाओ
इनके दो तरह के दाँतों को जनता को बस दिखाओ
कुछ स्वार्थी सदा अज्ञानता का लाभ उठाते हैं
वो तब ही नग्न होंगे जब सच सामने आते हैं

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असहिष्णुता के सपने

कुछ बुद्धिजीवियों को बढ़ती असहिंष्णुता के सपने आ रहे हैं
जिससे हुए व्यथित वो सरकारी सम्मान लौटा रहे हैं
एक दादरी हिंसा पे इनकी आत्मा रोती है
कश्मीरी हिन्दुओं की इन्हे चिंता ना होती है
जब पाक, बांग्लादेश में हिन्दू गए थे मारे
कोई इनसे पूछे कहाँ छुप गए थे ये सारे
आतंक के साए में जब पंजाबी मर रहे थे
ये सारे बुद्धिजीवी तब यहाँ क्या कर रहे थे
असम की जातीय हिंसा पे इनकी आत्मा ना रोइ
कहाँ तब सो गए थे सारे जरा पूछे तो इनसे कोई
नक्सली जब देश को नुकसान पहुँचा रहे थे
यही बुद्धिजीवी तब उन्ही के गीत गा रहे थे
तस्लीमा नसरीन पर जब हमला हो रहा था
इन सबका स्वाभिमान तब कहाँ सो रहा था
सलमान रुश्दी की किताब पर जब देश में रोक लगाई थी
अभिव्यक्ति की आज़ादी की तब याद किसी को ना आई थी
सिखों के कत्ले आम पर कहाँ थे ये सिपाही कलम के
तब क्यों ना झनझनाए तार संवेदना के मन के
हिन्दू जो पशुबलि दें तो बदनाम ये करते हैं
इनके दिल कभी ना पसीजे जब लाखों बकरे मरते हैं
मी नाथूराम गोडसे बोलतोय नाटक पर जब बैन था लगवाया
कला की आज़ादी का तब इन्हे ख़याल भी ना आया
अपना असल चेहरा ये खुद ही दिखाते हैं
करते हैं वही छेद जिस थाली में ये खाते हैं
इनकी इन हरकतों पे अतः ताव तुम ना खाओ
इनके दो तरह के दाँतों को जनता को बस दिखाओ
कुछ स्वार्थी सदा अज्ञानता का लाभ उठाते हैं
वो तब ही नग्न होंगे जब सच सामने आते हैं

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चाँद ...........( मेरा और तुम्हारा )

तुम सदैव मुझे चाँद की उपमा देकर पुकारा करते हो,
कभी आकर्षण में,
तो कभी प्रेम के वशीभूत,
शायद कभी मुझे बहलाने के लिए,
या फिर कभी मुझ उलझाने के लिए.
मुमकिन हो कभी अपनी गुस्ताखियाँ छुपाने के लिए भी ..
तुम कहते हो और मै सुनकर मुस्कुरा देती हूँ …
तुम्हे खुश करने के लिए
और तुम गौरान्वित भी होते हो की शायद तुमने मुझे बहला दिया ….
और मुझे अच्छा भी लगता है
की आखिर कुछ भी हो मुझे आकर्षित तो करते हो
जो भी हो वो तुम्हारी समझदारी और ईमानदारी है तुम जानो ..

मगर हाँ सुनो…….!

मेरे और तुम्हारे चाँद में बहुत फर्क है
इसका का असली महत्व वास्तविक रूप आज मै तुम्हे समझाती हूँ …
मेरी जिंदगी में दो चाँद है
एक वो जो सम्पूर्ण संसार को पसंद है ….
दूजा तुम जिसे मै चाहती हूँ …
उस चाँद से दुनिया रोशन होती है …. और तुम से मेरी जिंदगी.
वरन मेरे लिए दोनों का परस्पर महत्व है
दोनों मेरे लिए एक दूसरे के पूरक है
एक से मेरे सुहाग की आयु में वृद्धि का घोतक है … दूसरे से मेरे जीने का औचित्य
इसीलिए दोनों को एक साथ देखती हूँ
और तुहारे साथ जीवन की मंगल कामना करती हूँ
यदि वो चाँद न निकले तो तुम्हारे लिए पूजा अधूरी ..
और तुम्हारे बिना मेरे जीवन में उस चाँद का कोई आशय नही बचता
अब तुम ही कहो …….!
है न दोनों मेरे लिए एक दूजे के पूरक
समझ गए न मेरे और तुम्हरे जीवन में चाँद का भिन्न्न स्वरुप …!!
!
!
!
[————-डी. के. निवातियाँ ———-]

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।।ग़ज़ल।।तुम्हारी याद के सदमे ।।

।।ग़ज़ल।।तुमारी याद के सदमे।।

पुराने जख़्म थे फिर भी सहे नाशाद के सदमे ।।
अभी तकलीफ़ देते है कई दिन बाद के सदमे ।।

ये आंशू है बहेंगे ही करू मैं लाख कोसिस पर ।।
गिरेंगे भूल जाउगा तुम्हारी याद के सदमे।।

तुम्हे क्या तुम तो बच निकले किसी महफूज़ ‘साहिल’ पर ।।
मुझे झकझोर जाते है हुये बर्बाद के सदमे ।।

हरारत थी तुम्हे भी पर निकल दरिया से तुम भागे ।।
अकेले ही सहे थे हम तेरी फरियाद के सदमे ।।

उम्रभर आह भर भरके घरौंदा जो बनया था ।।
मिटा थी इश्क की मंजिल ढही बुनियाद के सदमे ।।

न पूंछो है बहुत अच्छा हमारे अश्क़ की कीमत ।।
सहता जा रहा इनकी बड़ी तादाद के सदमे ।।

R.K.M

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Read Complete Poem/Kavya Here ।।ग़ज़ल।।तुम्हारी याद के सदमे ।।

।।ग़ज़ल।।मेरा किरदार पढ़ लोगे।।

।।ग़ज़ल।।मेरा क़िरदार पढ़ लोगे।।
R.K.MISHRA

मेरी खामोशियो में भी मेरा इज़हार पढ़ लोगे .
कभी दिल से जरा समझो मेरा किरदार पढ़ लोगे .

न साहिल है न मंजिल की मुझे परवाह रहती है .
मग़र है आँख का दरिया छलकता प्यार पढ़ लोगे .

जरा तुम रोककर कर देखो हमारे आँख के आंशू .
झलकती झील में अपना अलग संसार पढ़ लोगे..

अभी तक बात करते हो हमेसा ही इशारों से .
जरा आग़ोश में आओ दिली झंकार पढ़ लोगे .

महज़ ये फ़ासले ही है जो हमको दूर करते है ..
यकीनन पास आये तो मेरा इनकार पढ़ लोगे ..

अग़र है शौक तुमको तो जाते हो चले जाओ .
ज़रा फिसले मुहब्बत में ग़मो की मार पढ़ लोगे ..

नही होते है पैमाने किसी से प्यार करने के ..
खुली दिल की किताबो में लिखा एतबार पढ़ लोगे..

×××

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Read Complete Poem/Kavya Here ।।ग़ज़ल।।मेरा किरदार पढ़ लोगे।।

ग़ज़ल.दौलत नही मिलती ।

ग़ज़ल.दौलत पर नही मरती ।

ये दुनियां संगदिल निकली मुहब्बत क्यों नही करती ।
फ़रेबी है अपनेपन की दौलत पर नही मरती ।।

चलो तुमको दिखाते है दवाओ की दुकानों में ।
तड़पते लोग रहते है दवा उनको नही मिलती ।।

बने मज़दूर बच्चों पर तरस अब हम नही खाते ।
करे दिन रात मेहनत पर आह उनकी नही थमती ।।

जहा देखो वही पर अब रिश्वत की वसूली है ।
न जाने शख्शियत क्या है जेब उनकी नही भरती ।

न जाने कौन सी मिट्टी से बने है लोग दुनिया के ।
भलाई की परत बेशक़ अब उनपे नही चढ़ती ।।

यहाँ पर प्यार के भी तो अज़ब किस्से कहानी हैं ।
हवस बढ़ती ही जाती है कली दिल की नही खिलती ।।

उजाला नाम दे देकर अँधेरा खूब बढ़ाते है ।
दीवाली रोज आती पर दिलों के तम नही हरती ।।

यहाँ के लोग रोते है खुदी के दर्द से ग़ाफ़िल ।।
ख़ुशी को देखकर रकमिश” ख़ुशी उनको नही मिलती ।।

—- R.K.MISHRA

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शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

आ हमतुम साथ चले (ग़जल)

तेरी जुल्फोँ कि छाँव में ज़िंदगी की शाम ढले!
चाहत की कच्ची ड़गर में आ हमतुम साथ चले !!

तेरी चाहत की खुमार चढी हैं सुब्हो शाम,
क्यों हों इस पागल से खफ़ा,आ लग जा गले !

अश्क बहाए हैं तन्हा,तेरी यादों में बहुत,
इंतज़ार में कहीं मर न जाऊ तड़प के अकेले !

तू भेज पुरवा संग सुरभि प्यार की मेरी आँगन,
मन नहीं लगता गुलिस्ता में भी आकाश तले !

दुरियाँ क्यों,तुमसे हैं जन्मों-जन्मों का बंधन साथी,
तू हमसफ़र दिल किया सदा के लिये तुम्हारे हवाले!

…Dushyant patel [कृष]

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मेरे देश में…………!!

मेरे देश में…………!!

जन्मते बच्चो को कूड़े में डाला जाता है
जँहा………..!
बेटियो को गर्भ में मिटाया जाता है
जँहा………..!
बहुओ को जिन्दा जलाया जाता है
जँहा………..!
माताओ को आश्रम में डाला जाता है
जँहा………..!
फूल से बच्चो से भीख मँगवाया जाता है
जँहा………..!
नन्हे हाथो को काम से लाया जाता है
जँहा………..!
गरीबो का मजाक बनाया जाता है
जँहा………..!
मजदूरो पर तरस दिखाया जाता है !
जँहा………..!
*
*
*
उलट इसके कुछ ऐसा भी होता है मेरे देश में
यँहा …..!
जानवरो के नाम पर खून बहाया जाता है
यँहा …..!
लोगो को मौत के घाट उतारा जाता है
यँहा …..!
अस्मित लुटती जँहा रोज कई नारी की
यँहा …..!
गाय को माँ, बहन, बेटी बताया जाता है
यँहा …..!
मंदिर मस्जिदो में धन लुटाए जाता है
यँहा …..!
गद्दारो को सम्मान दिलाया जाता है
यँहा …..!
डाकू और साधुओ को राजनेता बनाया जाता है
यँहा …..!………………………….मेरे देश में !

जाने ये कौन सा धर्म निभाया जाता है मेरे देश में !
हाँ कुछ ऐसा ही होता है निश दिन इस मेरे देश में !!

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मेरे देश में............!!

मेरे देश में…………!!

जन्मते बच्चो को कूड़े में डाला जाता है
जँहा………..!
बेटियो को गर्भ में मिटाया जाता है
जँहा………..!
बहुओ को जिन्दा जलाया जाता है
जँहा………..!
माताओ को आश्रम में डाला जाता है
जँहा………..!
फूल से बच्चो से भीख मँगवाया जाता है
जँहा………..!
नन्हे हाथो को काम से लाया जाता है
जँहा………..!
गरीबो का मजाक बनाया जाता है
जँहा………..!
मजदूरो पर तरस दिखाया जाता है !
जँहा………..!
*
*
*
उलट इसके कुछ ऐसा भी होता है मेरे देश में
यँहा …..!
जानवरो के नाम पर खून बहाया जाता है
यँहा …..!
लोगो को मौत के घाट उतारा जाता है
यँहा …..!
अस्मित लुटती जँहा रोज कई नारी की
यँहा …..!
गाय को माँ, बहन, बेटी बताया जाता है
यँहा …..!
मंदिर मस्जिदो में धन लुटाए जाता है
यँहा …..!
गद्दारो को सम्मान दिलाया जाता है
यँहा …..!
डाकू और साधुओ को राजनेता बनाया जाता है
यँहा …..!………………………….मेरे देश में !

जाने ये कौन सा धर्म निभाया जाता है मेरे देश में !
हाँ कुछ ऐसा ही होता है निश दिन इस मेरे देश में !!

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सीख

सीख

सूखे ठूंठ की भांति
निडर तना तु
मत खड़ा हो
कि………………
हवा आए ना हिलाये
झुकाये ना किसी के आगे
चाहे भले ही टूट जाये
वर्षा बरसे, तु ना तरसे
गीला होकर तुरंत तु सूखे
चाहे कितना झूम के बरसे
आंधी आये, तुफां आयें
तुझे जड़ से उखाड़ फेंके
पर मुंह से आह ना निकले
निडर हो तु प्राण गंवाये
पर ऐसा जीवन भी क्या
कभी ना झुक कर सीना ताने
घमंड में सिर को
ऊंचा रखना,
फिर खुद ठोकर खाकर
औंधें मुंह जमीं पर गिरना
मस्तक ऊंचा, फिर रहा कहां
भरे-पूरे पेड़ की भांति
दो छांव हरदम दिन-राति
फलों से लद कर झुक जाते हैं
समीर के आगे थिरकाते हैं
वर्षा में वो शर्माते हैं
हर दिन नया सवेरा लाकर
फूलों की सुगन्ध बिखेर जाते हैं
जीवन हमारा ऐसा हो,
जीवन हमारा ऐसा हो।
-ः0ः-

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वष में करती रात्रि

वष में करती रात्रि

रात्रि का तम
दूर करता हुआ
चंदा का प्रकाश
मौन साधे गलियों की
चुप्पी तोड़ती हुई
हवा की सांय-सांय
ओर पत्तों की
हंसी किलकारियां
एकाएक………………
आंखों को
सम्मोहित करती है
दूर से आती हुई
तालाब के किनारे से
मेंढकों की टर्राने की आवाज
षबनम की चंद बूंदों से
तृप्त हुई धरा के गर्भ में
पलने वाली नटखट
भंभिरियों की हृदय विदीर्ण
कानों को छेदने वाली
कर्कषता पूर्ण आवाज
एकाएक…………………..
मन को
अपने वश में करती है।
-ः0ः-

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कोसी का श्राप

कोसी का श्राप

एकाएक ……………
बरसात के रूक जाने के बाद
उत्तर दिशा से उमड़ पड़ा।
पानी का एक गुब्बार
ओर पानी के लुढकते हुए
लोढों से ………….
तबाह इस कदर हो जाता है।
वह आपदा का मारा हुआ
कोसी के श्राप से ग्रसित बिहार
करोड़ो का सामान
बस निगल जाता है।
मुंह खोलकर अपने अन्दर
उसने कुछ भी ना देखा
चाहे जीव हो, या पेड़ विशाल
कोसी का यह तांडव नृत्य
चीर गया धरती का सीना
अपरिचित वेग ने जैसे
भर लिया आगोस में अपने
लेकर जीवों को अपनी गोद में
दुलारता-फटकारता
कभी प्रेम के अथाह सागर में
डुबोता ओर उबारता
समाहित कर गया
वह कोसी का पानी
नन्हें छोटे-बडे़-बूढे़
ओर कुछ मासूमों की जवानी
यही तो हर साल की
उस निर्दयी, निर्लज्ज कठोर
भयावही कोसी की कहानी ।
-ः0ः-

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इंसान की परिभाषाएं

इंसान की परिभाषाएं

आज इंसान, इंसान को
बना रहा है स्वार्थी
इंसान की परिभाषाएं आज
हो गई हैं अनेकार्थी ।
इंसान ने इंसान को
है इंसान की संज्ञा दी
इंसान ने ही इंसान को
बना दिया है पर्यायवाची,
आज इंसान, इंसान को
बना रहा है स्वार्थी ।
आज यहां लिंग-लिंग में
हो रहा है बहुत मतभेद
शोषण लिंग का आज हुआ
भेद प्रश्नवाचक है नही
आज इंसान, इंसान को
बना रहा है स्वार्थी ।
मानव ने की मानव उपमा
स्वयं बनाया आंखों का तारा
कर भ्रूण हत्या मानव ने
लगा दिया चिन्ह विस्मयादि।
आज इंसान, इंसान को
बना रहा है स्वार्थी ।
-ः0ः-

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जुदाई

जुदाई

मेरे जाने के बाद प्रिये
मेरे पदचिन्हों को मत टोहना,
मुझे याद कर-कर के प्रिये
आंचल से मुख ढक मत रोना।
मेल और जुदाई तो
सब किस्मत का खेल है
अपनी किस्मत बुरी समझ के
विधाता को कभी दोष न देना,
मुझे याद कर-कर के प्रिये
आंचल से मुख ढक मत रोना।
कुछ दिन की ये जुदाई ही
लायेगी जिन्दगी की बहार
दरवाजे पर आरती की थाली लिये
बेशब्री से मेरी राह तकना,
मुझे याद कर-कर के प्रिये
आंचल से मुख ढक मत रोना।
-ः0ः-

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गुमसुम ना बैठो

गुमसुम यूं ना बैठिये
बोलिए कुछ तो बोलिये
आए हो जब से
इस दिल में
बहार छाई हैं
मन उपवन में,
मगर बैठो हो
ऐसे चुप क्यों ?
पंछियों की तरह चहकिये,
गुमसुम यू ना बैठिये ।
विराने हुए गुलिस्तां
फकीर बने बादषाह
हाथ अपना दे दो हमें
हो जायें हम भी आबाद
मांग रहे हैं तुम से कुछ
अंजलि भरकर दीजिए,
गुमसुम यू ना बैठिये ।
-ः0ः-

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Pyari Matribhumi

प्यारी मातृभूमि

क्षत-विक्षत वसन धारी
प्यारी मातृभूमि हमारी ।
वासव भिगोये वारि से
अचल हो, मन में हर्ष से
भाषित मुदित-सी मोदिनी,
क्षत-विक्षत वसन धारी।
लगी कूंकने वसन्त दूतें
पुरवैया लगी मारने फुकें
अतिवेग मंदाकिनी वारि,
क्षत-विक्षत वसन धारी।
आपगा सींचे मातृभूमि
खिले ताल में सुन्दर नलिनी,
रश्मि भानु देखें खोल पंखुरी,
क्षत-विक्षत वसन धारी।
-ः0ः-

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प्राण

हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण
हे भगवान!

साँसों की डोर यहाँ
साँझ, दोपहर, भोर यहाँ
दूर के हिलोरे
में रहता सदा क्यों ध्यान?
हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण

दाना यहाँ पानी यहाँ
जीवन की कहानी यहाँ
फोन की घंटियाँ पर
सुनाती हैं दास्तान
खुशियों के इंटरनेट से
आते हैं पैगाम
हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण

उलझनों को बीच फिर
जिंदा हुई किताबें
किस्से कहानियों के उस
जादूगर की बातें
दूर तोते में जो
रखता था अपनी जान
हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण

ये सच है क्या?
जीवित देह की क्या विभाजित है जाँ?
जीवन आधार जहाँ
क्या प्राण हैं वहाँ?
ये किसके जादू टोने?
ये कैसा है कमाल?
हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण

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Faishan Ki Daud

फैशन की दौड़

कहां अभी स्वतंत्र हुए हम
आजादी के इस दौर में,
पांव हमारे पकड़ लिये हैं
फैशन की इस दौड़ ने ।
फैशन की दौड़ भाग में हम
भुला बैठे हैं संस्कृति को
जो हमारे अतीत थे
भुल गये उन गीतों को
हाथ पर हाथ धरे बैठें हैं
करना है कुछ ओर हमें
कहां अभी स्वतंत्र हुए हम
आजादी के इस दौर में।
माना भूली संस्कृति को
वापिस हम नही ला सकते
मगर जो वो आदर्श हैं
उनको भुला नही सकते
उन आदर्शों की नींव पर
महल बनाना हैं चाहते
कहां अभी स्वतंत्र हुए हम
आजादी के इस दौर में।
-ः0ः-

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Priye Teri Khubi

प्रिये तेरी खूबी

आंखों में नव-ज्योति प्रभा
होठों पर यामिनी छटा
तन मधु से ओत-प्रोत
मन में तेरे विलाषिता।
बालों में रात,
नैनांे में भोर
तन पे उजाला छाया है
कंठ में साज
वाणी में राग,
रोआंे में नृत्य आया है
अपने मीत से करके प्रित
लाई सावन की रौनकता
तन मधु से ओत-प्रोत
मन में तेरे विलाषिता।
टपके शराब
हर अंग-अंग से
होठ सुरा के प्याले हैं
बिना पिलाये
खुद नशा चढे़
ऐसे नैन मतवाले हैं
फिकी लगे प्रकृति देखो
ऐसी है मेरी प्रेमिका
तन मधु से ओत-प्रोत
मन में तेरे विलाषिता।
तन सुघड़
छोटे कर्ण
रंग हल्का गुलाबी है
होंठ लाल
मदमस्त चाल
नाक खड़ी गुलाबी गाल
भाल पर चमचमाती बिन्दी
सज कर आई प्रियतमा,
तन मधु से ओत-प्रोत
मन में तेरे विलाषिता।
-ः0ः-

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Sharab

शराब

एक दिन अंगूर की बेटी ने
मुझसे कुछ यूं कहा
एक बार, सिर्फ एक बार
मुझे भी चखकर देख जरा
तेरी जिन्दगी मैं ना संवार दूं
तो मुझे कहना
तुझे धरती से उठाकर
आसमान पर ना बिठा दूं
तो मुझे कहना
तुझे कुर्सी से उठाकर
सिंहासन पर ना बिठा दूं
तो मुझे कहना
तु बस मुझे ही चाहेगा
हर जगह दिखूंगी मैं तुझे
तु लुट कर भी
पागल हो कर भी
चाहेगा सिर्फ मुझे
आंखे तेरी नशीली होंगी
हर जगह पायेगा मुझे
हर दुःख-दर्द से निजात पाकर
राहत महसूस होगी तुझे
भटकता फिरता है यूं ज्यों तु
मंजिल पर पहुंच जायेगा
गमों का काला बादल भी
श्रावण में बदल जायेगा
जब तु मेरे दर पर
मेरे घर मधुशाला आयेगा।
बनाकर दूंगी मैं प्याला
फिर तु हाला कहलायेगा।
-ः0ः-

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Garib Panktiya

गरीब पंक्तियां

मेरी कविता की
चंद पंक्तियां,
फूलों की भांति
महकती हुई-सी
जीर्ण-शीर्ण कपड़े पहने
मुंह पर चमक-दमक लिये
सूरज की लाली-सी लाल
हरियाली-सी हरी-भरी
हर शब्द चंचल होकर
तेरे होठों को छूने हेतु
घुमेंगे तेरे ईर्द-गिर्द
नाचेंगे-लहरायेंगे
फिर ऐसे गीत बन कर
दुनियां में छा जायेंगे
फुलेंगे-फलेंगे
तुमसे घुल-मिल जायेंगे
मेरे अधूरे गीत ये प्रिये
तुमसे मिलने आयेंगे
हरदम आगे-पिछे घुमेंगे
तेरा साथ हर समय पायेंगे
ऐसा नही कि-……..
लेंगे तुमसे ये कुछ
सुकून शांति ओर इज्जत
तुमको देकर ये जायेंगे।
-ः0ः-

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Uchch Varg

उच्च वर्ग

उच्च अट्टालिकाओं पर बैठे
तुच्छ तुम्हारी औकात है क्या,
भूकम्प आये धरती हिले
मिट्टी बन मिल जाये मिट्टी
सोने की फिर बिसात है क्या।
इतना होने पर भी तुम
क्यों सोते हो नभ में चढ़कर
आंधी चले सहारा हिले
ढह जाये स्वप्नमयी महल
थोथे बांस की नींव है क्या,
उच्च अट्टालिकाओं पर बैठे
तुच्छ तुम्हारी औकात है क्या।
सर्दी-गर्मी का आभास नही
सब कुछ तेरे पास सही
विद्युत कटे, तारें टुटे
तब हो जाये हाल बुरा
मिथ्या चीजों का विश्वास है क्या,
उच्च अट्टालिकाओं पर बैठे
तुच्छ तुम्हारी औकात है क्या।
-ः0ः-

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Suna Path

सूना पथ

सुनसान अविचल
धूप में नहाता हुआ,
अकेला चिल्ला-चिल्लाकर
पथिक तुझे पुकार रहा।

कंकड़ धूप से हुए हैं लाल
पगों को कर देंगे बेहाल
फिर भी बढ़ना तो पड़ेगा
क्या गर्मी, क्या वर्षाकाल

ऋतुओं का ये हेर-फेर
तन को जैसे दुत्कार रहा
अकेला चिल्ला-चिल्लाकर
पथिक तुझे पुकार रहा।

आंख मिचौली करने को
हठिले मेघ चले आयेंगे
तन को ढांप लेंगे ये
कभी धूप ये छलकायेंगे

दुश्मन लगेगा हर शख्श
जो इन पर है बढ रहा
अकेला चिल्ला-चिल्लाकर
पथिक तुझे पुकार रहा।

-ः0ः-

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Naval Pal Parbhakar

धरती

मैंने उसको
जब भी देखा,
खिलते देखा
उजड़ते देखा
बहकते देखा
महकते देखा
हंसते देखा
रोते देखा
स्वर्ण सुरभि
छेड़ते देखा
पर इसको
जब………….
कुपित देखा
शक्ति रूप
बदलते देखा
समाहित कर
भूमंडल को
उदर में अपने
धरते देखा ।
-ः0ः-

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ग़ज़ल.मैं एक दिया था बुझा दिया गया हूँ ।

ग़ज़ल.मैं एक दिया था बुझा दिया गया हूँ ।।

मैं एक दिया था मिटा दिया गया हूँ .
उनकी ख़ैरात था लुटा दिया गया हूँ .

हौसला रखता था ये दिल मुहब्बत का .
मैं एक मुकाम था मिटा दिया गया हूँ .

अब वही लिखता हूँ तन्हा के आंशुओं से .
मुहब्बत में जो भी सिखा दिया गया हूँ

तब तो मेरे नाम की तारीफ होती थी .
अब बदनाम इशारों से दिखा दिया गया हूँ .

दर व् दर की ठोकरों से आज साहिलों पर .
बेकार आंशुओं सा गिरा दिया गया हूँ .

अब चर्चाओं में मेरा जिक्र नही होता .
पुरानी यादों सा मैं भुला दिया गया हूँ .

मुहब्बत की एक लम्बी दास्ताँ था मैं .
आज बेनाम ख़त सा जला दिया गया हूँ .

मिलता था बेकरारियो में भरोशा और हौंसला .
रुसवाइयों में शराब ऐ गम पिला दिया गया हूँ .

सकून आ गया जब दर्द बढ़ गया हद से .
अब ग़मो के मंजर में डुबो दिया गया हूँ .

रकमिश” मेरी जिंदगी मुहब्बत ऐ मिसाल थी .
अब बदनाम और बुझदिल बता दिया गया हूँ .

—-R.K.MISHRA

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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

माँ मुझको फिर लोरी सुना दो.........

माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!

विरह व्यथित हु, दीन दुखी मै
अब हार थककर चूर हुआ हूँ
रखकर अपने पुष्प हाथो को
मेरे मस्तक फिर से सहला दो !

माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!

अस्त व्यस्त है, जीवन लीला
सरदर्द का हर दिन बढ़ता पहरा
समझ सकती हो तुम मेरी पीड़ा
मुझको तुम थोड़ा सा सहला दो !

माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!

अफरा तफरी का माहोल बना
चारो और नर संहार हुआ है
जिसे देखकर मै घबरा जाता हूँ
आकर तुम मेरा ढांढस बंधा दो

माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!

घर परिवार की चिंता रहती
रोज़ महंगाई की मार सताती,
देख कर मन हुआ जाता अधीर
आकर इस मन को समझा दो !

माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!

बहुत वक़्त बीता आशा में
सोता हूँ रातो में जागे जागे
कब से नही सोया चैन की नींद
प्यारी थपकियाँ पीठ पर जमा दो !

माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!
माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!
!
!
!
——-:::डी. के. निवातियाँ :::——-

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जीवन के हर क्षण अनमोल

अति लघु रूप सा क्षण है अपना
कैसे करेंगे पूरा सपना
दुर्लभ पल बीतता ही जाता
युग करवट लेता ही जाता
समय कभी समान ना होता
पूरे सब अरमान ना होता
आज होठों पर हंसी सजी है
कल नयनों में नीर भरी है
सुख के दिन होते हैं छोटे
हमने सुने हैं ये कहावतें
आलोचना से मानें ना हार
ना पड़े कमजोर लाचार
खोने के क्षण पाने के पल
जीवन में आते हैं हरपल
खोदते रहते जो पृथ्वी को
भूमि आश्रय देती उनको
एक दिन सबको जाना ही है
ये कटु सत्य जो माना ही है
अपने आप कोई ना निखरा
जो टूटा ना हारा-बिखरा
अपार कष्ट बाधायें झेले
विकट कठिन राहों से निकले
फिर भी सब जीवन जीते हैं
गम में अपने मुस्काते हैं
ऐसे लोग हुए हैं अनेक
जिनके पथ हुए हैं नेक
क्योंकि जीवन है अनमोल
इसका नही है कोई मोल .

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इम्तिहान

अपने आप
क्या आफत है
व्दिविधा हो तो १

बंद हो रास्ता
होता कर या मर
क्या कहूँ तुझे २

वहीँ का वहीँ
कितना आते जाते
वही है रास्ता ३

कभी न नापे
मंजिल जीवन का
कब पहुंचे ४

चलता रहा
जल्दी तो कोई धीमा
रास्ता तो वही ५

दिल का स्पर्श
बस,झूमता रहा
यूँ ही कब से ६

लो इम्तिहान
नफ़रत की आग
जिना सिखाता ७
१०/२९/२०१५

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रसोईघर

रसोईघर
रसोईघर एक किले से कुछ कम नहीं
उसकी स्वामिनी होती है एक गृहिणी
बर्तनों की आवाज़ और चूड़ियों की खनखनाहट से
किले में उसका होना संकेत है
रसोईघर गृहिणी के लिए एक किले से कुछ कम नहीं

सब कामों पर उसका नियंत्रण होना
अपनी फ़ौज को युद्ध के लिए तैयार रखना
आभास होता है एक सुघड़ गृहिणी होना
कुछ गड़बड़ी हो तो रोक देना
रसोईघर गृहिणी के लिए एक किले से कुछ कम नहीं

किले के द्वार खुलते ही गरम चाय की चुस्की देना
रात के भोजन के बाद द्वार का बंद हो जाना
गृहिणी की आज्ञा का पालन करना
बिना सज़ा दिए एक अपराधी को माफ़ करना
रसोईघर गृहिणी के लिए एक किले से कुछ कम नहीं

मसालों की खुशबू और हलवे की सुगन्ध से
अन्नपूर्णा देवी के मंत्रों का शुरु हो जाना
कुक्कर की सीटी और दाल छोंकने की आवाज़ों से
वाद्ययंत्रों का बज उठना
रसोईघर की व्यवस्था करना एक किले से कुछ कम नहीं

उसके रसीले भोजन के चटकारे लेना
गृहिणी के लिए है जैसे किला जीतना
किले से दुर्गंध आने लगना
युद्ध हार जाने से कुछ कम नहीं
रसोईघर गृहिणी के लिए एक किले से कुछ कम नहीं

गृहिणी का अपनी गलती को ढूँढना
किले का उथल-पुथल हो जाना
उसकी कोशिश का व्यर्थ न होना
फिर से किले को सुचारू रूप से चलाना
रसोईघर गृहिणी के लिए एक किले से कुछ कम नहीं

थालियों की चमक में से झाँकती
उसकी माथे की बिंदिया
साड़ी के पल्लू से गीले हाथ
और माथे से पसीने की बूँदे पोंछना
सुघड़ गृहिणी होने से कुछ कम नहीं
रसोईघर गृहिणी के लिए एक किले से कुछ कम नहीं

रसोईघर गृहिणी की रणभूमि है
और वह किले की महाराऩी
दूसरे किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं
चारों ओर से किले पर अपना आधिपत्य रखना
रसोईघर गृहिणी के लिए एक किले से कुछ कम नहीं ।।
—————————————————————–

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“प्यार”

पहली ठोकर ने मुह के बल गिराया
दर्द पुराना होने तक महसूस किया
दूसरी ठोकर ने सर खोल कर रखा दिया
होश आने तक जिंदगी हवा हो गई थी
तीसरी ठोकर ने आत्मा को रुला दिया

दुबारा न गिराने का इरादा कर
सोचा पत्थर ही हटा दे

पत्थर को जो देखा
दिल ने कहा, चलो फिर
ठोकर खाते है

क्योंकि उस पत्थर का नाम
"प्यार" था

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चिड़िया रानी.....(बाल कविता)

चूं चूं करती चिड़िया रानी
नित नया संगीत सुनाती है !
डाली-डाली, दौड़े वृक्ष-वृक्ष
प्रातकाल हमको जगाती है !!

उठो जागो हुआ सवेरा
अपनी धुन में गाती है !
आँखे खोलो, नही सोना
अब रैना बीती जाती है !!

उदय हुआ नव् दिन का
मधुर पवन गुनगुनाती है !
रवि बिखेरे अपनी किरणे
नभ में लाली बिखराती है !!

लहलाते वृक्ष हरे भरे,
पुष्पों से सुगंध आती है !
करलव करते नभ में पंछी
मिलकर सरगम गाती है !!

रोज सवेरे मेरे घर भी
एक नन्ही चिड़िया आती हैं !
छेड़कर वो मधुर संगीत
निश दिन हमे बताती है !!

उठ जाओ तुम मेरे प्यारो
तुम्हारी डगर बुलाती है !
राह देखती मंजिल तुम्हारी
ये रोज स्मरण कराती है !!

@@@___डी. के. निवातियाँ____@@@

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आरम्भ है प्रचंड… - www.sanatansewa.blogspot.com

आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो,
आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो,
आन बान शान, या कि जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो!
आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो,
आन बान शान, या कि जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो!
आरम्भ है प्रचंड……..
मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले, वही तो एक सर्वशक्तिमान है, – २
कृष्ण की पुकार है, ये भागवत का सार है कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है,
कौरवों की भीड़ हो या पांडवों का नीड़ हो जो लड़ सका है वोही तो महान है!
जीत की हवस नहीं, किसी पे कोई वश नहीं, क्या ज़िन्दगी है, ठोकरों पे वार दो,
मौत अंत है नहीं, तो मौत से भी क्यों डरें, ये जा के आसमान में दहाड़ दो!
आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो,
आन बान शान, या कि जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो!
वो दया का भाव, या कि शौर्य का चुनाव, या कि हार का ये घाव तुम ये सो चलो, – २
या कि पूरे भाल पे जला रहे विजय का लाल, लाल यह गुलाल तुम ये सोचलो,
रंग केसरी हो या, मृदंग केसरी हो या कि केसरी हो ताल तुम ये सोच लो!
जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो प्रेमगीत, उस कवि को आज तुम नकार दो,
भीगती मसों में आज, फूलती रगों में आज, आग की लपट का तुम बघार दो!
आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो,
आन बान शान,याकि जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो!
आरम्भ है प्रचंड…
आरम्भ है प्रचंड…
आरम्भ है प्रचंड…
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राम जी

सपने तो दिए हैं, अब उड़ान देना राम जी
विश्राम से पहले ऊँचा, मुकाम देना राम जी
सपने तो दिए हैं, अब उड़ान देना राम जी

तुम्हीं हमें दुनिया में लाए, तुमने ही रास्ते दिखाए
चौड़ा हो सीना तुम्हारा, ऐसी पहचान देना राम जी
सपने तो दिए हैं, अब उड़ान देना राम जी

अजब मेले लगाए, गजब करतब दिखाए
बढ़ती ही जाए हरदम, वो दुकान देना राम जी
सपने तो दिए हैं, अब उड़ान देना राम जी

जो काम दिए तुमने, हो जाएं पूरे हमसे
हमको यथोचित प्यार और सम्मान देना राम जी
सपने तो दिए हैं अब उड़ान देना राम जी

रास्ते में चोर लुटेरे, हम आसरे पे तेरे
अचूक जाए तीर, ऐसी कमान देना राम जी
सपने तो दिए हैं, अब उड़ान देना राम जी

सपने तो दिए हैं, अब उड़ान देना राम जी
विश्राम से पहले ऊँचा, मुकाम देना राम जी
सपने तो दिए हैं, अब उड़ान देना राम जी

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जिसको भारत स्वीकार नहीं, वो पाकिस्तान चला जाए। - www.sanatansewa.blogspot.com/

अब वो नस्ल है बदल चुकी जब फिर से हिन्दू छला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,.. वो पाकिस्तान चला जाए
हम त्याग चुके वह मानवता,….जो कायरता कहलाती थी
कोई तिलक लगाता था तो वह कट्टरता समझी जाती थी
नियम न माने जो घर के….. वो लेकर सामान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,.. वो पाकिस्तान चला जाए
सर्व धर्म समभाव के बदले, भारत का अपमान नहीं होगा
माता को डायन कहने वालों का,. अब सम्मान नहीं होगा
जब तक चुप बैठे हैं.. वो बचा कर अपनी जान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,..वो पाकिस्तान चला जाए
जो जाति, धर्म, मज़हब का रोना,. छाती पीट कर रोते हैं
आतंकियों के मरने पर उनकी, मईयत में शामिल होते हैं
खून खौलता है सबका,…. कब तक हाँथों को मला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,..वो पाकिस्तान चला जाए
कुछ लोग देश में गद्दारों को भी साहब और जी कहते हैं
जयचंदों से है इतिहास भरा,… ये हर युग में ही रहते हैं
हमदर्द हो जो गद्दारों का,.. वो खुद शमशान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,वो पाकिस्तान चला जाए
हर मज़हब को अपनाया हर धर्म को हमने शरण दी है
इस उदारवाद ने ही केवल, मर्यादा अपनी हरण की है
ऐसा दानी क्या कि खुद का नाम ओ निशान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,वो पाकिस्तान चला जाए
राष्ट्र की बलिवेदी पर जो भी कुर्बान हुआ वो तरा ही है
जिसे धर्म धरा पर गर्व नहीं वह जीवित हो भी मरा ही है
वीर सुभाष, भगत सिंह का व्यर्थ न बलिदान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,.वो पाकिस्तान चला जाए
शान्ति शान्ति करते करते कितना नुकसान करा बैठे हैं
हम जिनको भाई कहते हैं, वो कब से ले के छुरा बैठे हैं
कहीं इतनी देर न हो जाए, कि सब सम्मान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,वो पाकिस्तान चला जाए।। http://sanatansewa.blogspot.com/

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जिसको भारत स्वीकार नहीं, वो पाकिस्तान चला जाए। - www.sanatansewa.blogspot.com/

अब वो नस्ल है बदल चुकी जब फिर से हिन्दू छला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,.. वो पाकिस्तान चला जाए
हम त्याग चुके वह मानवता,….जो कायरता कहलाती थी
कोई तिलक लगाता था तो वह कट्टरता समझी जाती थी
नियम न माने जो घर के….. वो लेकर सामान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,.. वो पाकिस्तान चला जाए
सर्व धर्म समभाव के बदले, भारत का अपमान नहीं होगा
माता को डायन कहने वालों का,. अब सम्मान नहीं होगा
जब तक चुप बैठे हैं.. वो बचा कर अपनी जान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,..वो पाकिस्तान चला जाए
जो जाति, धर्म, मज़हब का रोना,. छाती पीट कर रोते हैं
आतंकियों के मरने पर उनकी, मईयत में शामिल होते हैं
खून खौलता है सबका,…. कब तक हाँथों को मला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,..वो पाकिस्तान चला जाए
कुछ लोग देश में गद्दारों को भी साहब और जी कहते हैं
जयचंदों से है इतिहास भरा,… ये हर युग में ही रहते हैं
हमदर्द हो जो गद्दारों का,.. वो खुद शमशान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,वो पाकिस्तान चला जाए
हर मज़हब को अपनाया हर धर्म को हमने शरण दी है
इस उदारवाद ने ही केवल, मर्यादा अपनी हरण की है
ऐसा दानी क्या कि खुद का नाम ओ निशान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,वो पाकिस्तान चला जाए
राष्ट्र की बलिवेदी पर जो भी कुर्बान हुआ वो तरा ही है
जिसे धर्म धरा पर गर्व नहीं वह जीवित हो भी मरा ही है
वीर सुभाष, भगत सिंह का व्यर्थ न बलिदान चला जाए
जिसको भारत स्वीकार नहीं,.वो पाकिस्तान चला जाए
शान्ति शान्ति करते करते कितना नुकसान करा बैठे हैं
हम जिनको भाई कहते हैं, वो कब से ले के छुरा बैठे हैं
कहीं इतनी देर न हो जाए, कि सब सम्मान चला जाए
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" मुमकिन है "

मुर्दे में जान फूंकना
मुमकिन नहीं
लाशों में आवाज़ फूंकना
मुमकिन नहीं

मुमकिन है
जीते जी बंजर न बनना
मुमकिन है
मरने से पहल ना मारना…!

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बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

ग़ज़ल.कल न लौटेगा दुबारा ।

ग़ज़ल.कल न लौटेगा दुबारा।

क़द्र उसकी क्यों करें हम जिंदगी से जो है हारा ।
चल रहे है ठोकरों पर आज हम भी बेसहारा ।।

हारने का ये तो मतलब हैं नही क़ि टूट जाओ ।
टूटने के दर्द का तुम कुछ करो एहसास प्यारा ।

मिल सकेगी न कभी मंजिल उसे तुम मान लेना ।
जो निकल दरिया से भागा बुझदिलो सा कर किनारा ।।

उम्र भर जिसने न समझा उम्र की तरकीबिया को ।
उम्र ढल जायेगी उसकी क्या करेगा बन बेचारा ।।

ख़्वाब सपने जो सजायें चल उसे कर दे हक़ीक़त ।
वक़्त गुजरा न मिलेगा कल न लौटेगा दुबारा ।।

सोचने की उम्र तो अब है नही मेरे दोस्त रकमिश” ।
कब उड़ोगे हौसलों के पंख का लेकर सहारा ।।

—R.K.MISHRA

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अलंकृत दोहे ......

अलंकृत दोहे ……

कल कल करलव करती कावेरी बहती करके कलनाद !
शीला सहित अगड बगड, नहाते उतरे जीवन नैया पार !!

घन घन करती घटा चली,गरजे घट में उमड़े घनघोर !
अंतर्मन में संशय उठते, घबराहट में करत अति शोर !!

पत्ता पत्ता पेड़ से पड़ा पेट बल, गिर मिटटी में हुआ भोर विभोर
पवन पुरवाई पुरजोर चली, वनस्पति कांपे होकर झकझोर !!

घट में घटती घनी घटना, घट विच घट में ही घटती रही !
विषमताओं में उलझे प्राण, उम्र जीवन पर्यन्त कटती रही !!

मन मयूर मांगे मेघ मलहार, नृत्य मग्न हो लगावत आस !
कबहुँ आवे मोरे सावरिया, कितने बरसो में नही आये पास !!

!
!
!
!!________डी. के. निवातियाँ _____!!

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प्राण

हे भगवान!
आज ढूँढते हैं अपने प्राण
हे भगवान!

सुख चैन ढूँढते
उस खुशहाल गांव के
ग्रामीणों की तरह
जो आने के एक दुष्ट जादूगर से
हो गए हे बेचैन, परेशान
आज ढूँढते हैं अपने प्राण
हे भगवान!

उस राजकुमार की तरह
जिसने बंधाई ग्रामीणों की उम्मीद
जो करेगा दुष्टता का अंत
देगा पुनः चैन की नींद
लौटेगा उनका सम्मान
आज ढूँढते हैं अपने प्राण
हे भगवान!

उन ग्रामीणों और राजकुमार की तरह
जो हैं हैरान
जादूगर तो चित्त है चारों खाने
फिर भी हँसता है, कैसै जाने?
"मरणासन्न हूँ! मार नहीं पाओगे
दूर देश बसे तोते में रखे हैं मेरे प्राण
तुम कैसे पहुँच जाओगे"
हे भगवान!

कहानी ने याद दिलाया
प्राणों को दाना बना
अपने परिंदों को खिलाया
परिंदों की ऊँची उड़ान
आज ढूँढते हैं अपने प्राण
हे भगवान!

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बधाई सन्देश .......!!

यह कविता मैंने अपने दोस्त को उसके जन्मदिन पर भेट की थी, आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ !!

तुम्हे आज क्या दू मै तोहफा,
कुछ भी तो नहीं पास मेरे देने के लिए !
देता हु तुमको आज कुछ
शब्दों की माला जीवन में अपनाने के लिए !
राह कठिन हो न घबराना,
कांटे से गुजरना जरुरी है फूल पाने के लिए !
सुख दुःख है जीवन का फेरा,
हर शै: को अपनाना, सफलता पाने के लिए !
चलना सदैव सत्य और प्रगति के पथ पर
बहुत जरुरी है जीवन में आत्मसम्मान पाने के लिए….!!
!
!
तुम्हारा शुभाकांक्षी ……!!
!
डी. के. निवातियाँ ………!!

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हाइकू.जय माता दी.

।हाइकू।जय माता दी।

अभी सबेरा
दोपहर के बाद
छायेगी श्रद्धा

पुनः शाम को
कलरव आरति
शंख ध्वनि से

लगेंगे तांते
हल्दी चन्दन टीके
अलख जगेगा

भव्य रूप का
झिलमिल चित्रण
दर्शन होगा

बजे नगाड़े
गूँजेंगे जयकारे
जय माता दी

—R.K.MISHRA

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ग़ज़ल.दिवाने याद रहते है.

.ग़ज़ल.(दिवाने याद रहते है)

तेरी नजरो की ख़ामोशी , तराने याद रहते है ..
लगे जब हम कभी तुमको मनाने याद रहते है..

भले खुद को लुटा दे तू हमारी शौक में हमदम .
मग़र वो दर्द के तेरे जबाने याद रहते है …

बहुत कम फ़ासले थे पर कभी कोशिस न की तुमने ।।
न मिलने के तुम्हारे सब बहाने याद रहते है ।।

हमारे दिल की राहो को तुम्हारा यूँ कुचल जाना .
नही अब जख्म होते पर पुराने याद रहते हैं ..

कभी आना तो देखोगे नही बाक़ी है तन्हाई ..
मग़र तेरे गम के मंजर के तराने याद रहते है ..

करो तुम लाख कोशिस पर मुझे न भूल पावोगे .
खुदा भूले तो भूले पर दीवाने याद रहते है ..

अभी भी वक्त है हमदम इरादा हो चले आना ..
तेरे आगोश के लम्हे सुहाने याद रहते है . .

×××

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ग़ज़ल.मुझे भी डर नही लगता.

ग़ज़ल .मुझे भी डर नही लगता
R.K.MISHRA

अब तेरे बिन घर मेरा ये घर नही लगता .
अब अँधेरो से मुझे भी डर नही लगता .

आयेगी तू लौट कर मुझको अभी भी है यकीं .
बेबसी तब तक रहेगी पर नही लगता .

रूप तेरा आ ही जाता है अँधेरी रात में .
चाँद सा चेहरा वो संगमरमर नही लगता .

तू जो थी तो जिंदगी भी चल रही थी साथ में .
अब जी सकूँगा एक पल अक्सर नही लगता .

उस नदी के पास जो तू एक दिन मुझसे मिली थी .
ढूढ़ता हूँ दरबदर पर वो दर नही लगता .

इन नतीज़ो की न माने तो मेरे इस दिल की सुन ले .
ये धड़कता है अभी पथ्थर नही लगता .

एक पौधा सींचता हूँ मैं मेरे इन आंशुओं से .
लाख़ चाहू पर अभी तो फर नही लगता .

ढह ही जायेंगे घरौंदे अश्क़ की बरसात से .
बच सकेंगे प्यार के मंज़र नही लगता .

×××

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ग़ज़ल.प्यार का बाज़ार है .

.ग़ज़ल.प्यार का बाज़ार है .
R.K.MISHRA

तुमने सजा रखा है जो ये प्यार का बाज़ार है .
ये डुबो देगा तुम्हे भी दिल तेरा गद्दार है .

तोड़ दिल को जो गये तुम वक्त से पहले मेरा .
प्यार के काबिल न छोड़ा हो गया बेकार है .

है पता तुमको नही क्या हुआ होगा यहा .
सर्द मौसम गम भरे अब अश्क़ की भरमार है .

सह अकेले मैं रहा हूँ दर्द की वो सलवटे .
ढल रही अब चांदनी चाँद भी लाचार है .

फ़िक्र मत कर बद्दुआये मैं कभी दूँगा नही ..
पर तेरे इस संगदिल पर मेरा धिक्कार है .

रूप तेरा भी ढलेगा एक दिन तुम देख लेना .
फ़ैसला होकर रहेगा बस वक्त का आसार है..

×××

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ग़ज़ल गीत.हर कोई इंसान था.

।।ग़ज़ल गीत ।।हर कोई इंसान था।।

दोस्तों से क्या कहूँ मैं रंजिसे बढ़ने लगीं है .
अब वफ़ा के नाम पर जब साजिस होने लगी है .
प्यार की महफ़िल सजी थी रास्ता आसान था .
साथ मेरे जो चला था हर कोई इंसान था ..

जब चले थे कारवां था, हमवफा थे लोग अपने .
थे सजाये चल रहे थे आरजू कुछ ख्वाब सपने .
मिल रही थी मंजिले दिल मेरा नादान था ..
साथ मेरे जो चला था हर कोई इंसान था ..

दर्द से वाक़िब नही थे, न ही गम के ज़लज़ले थे .
प्यार की चाहत मिली बस साथ सबके चल पड़े थे .
महफ़िलो से महफ़िलो तक रास्ता आसान था .
साथ मेरे जो चला था हर कोई इंसान था ..

सब बिछड़ते जा रहे थे पा के महफ़िल प्यार की .
फासले बढ़ते रहे पर थी ख़बर न हार की ..
साहिलों पर अकेला था मगर अनजान था ..
साथ मेरे जो चला था हर कोई इंसान था ..

खो गये है दोस्त सब पाके इक शाया किसी का .
न खबर आयीं किसी की न ही खत आया किसी का .
अश्क़ आँखों से बहे थे दर्द का एलान था ..
साथ मेरे जो चला था हर कोई इंसान था ..

R.K.MISHRA

××××

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ग़ज़ल.हर मज़ा बेकार सा था .

।गजल।हर मज़ा बेकार सा था।

वक्त था पर दर्द में हर अश्क़ बेजार सा था ।।
साहिलों पर जो भी मिला हर शख़्स गुनेहगार सा था

मुद्दतो बाद जब हुई शिद्दत किसी को पाने की ।।
बोली लग रही दिल की हर महफ़िल बाजार सा था ।।

न गम थे ,न ज़फ़ा थी,और न थी वहाँ तन्हाइयां भी ।।
फासले भी नही थे पर हर मजा बेकार सा था ।।

इल्म न था खुद के ऊपर जश्न तो पुरजोर था ।।
जम रही महफ़िल के ऊपर दर्द का बौछार सा था ।।

हर कोई था दर्द से वाक़िब मग़र ख़ामोश था ।।
प्यार से जादा उसे उस दर्द पर एतबार सा था ।।

हो रही थी गुप्तगू पर बढ़ रही थी रौनके भी ।।
इश्क़ का दरिया वही पर हर कोई बेकरार सा था ।।

थी वहा पर चाहते पर ख्वाहिशो की क़द्र न थी ।।
बच निकल आया वहा पर प्यार तो दुस्वार सा था ।।

R.K.MISHRA

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ग़ज़ल.न तुझमे कमी है न मुझमे कमी है .

।गज़ल।न तुझमे कमी है ।।

वहाँ तेरे आँगन में महफ़िल जमी है ।
यहाँ मेरे दिल पर गमे रौशनी है ।।

भले आज तेरी नजर न उठे ये ।
जो चेहरे से हटकर जमी पे ज़मी है ।।

मग़र आज मुझको पता चल गया है ।।
यक़ीनन छटेगा ये गम मौसमी है ।।

बहेगी हवा कोई चाहत की गर तो ।
ढहेगा तेरा गम ये जो रेशमी है ।।

अग़र हौसला हो जरा आज कह दे ।।
न तुझमे कमी है न मुझमे कमी है ।।

जरा पास आकरके आँखों में झांको ।।
पलको पे उभरी नमी ही नमी है ।।

अग़र पास में हो छिपा लेना वो खत ।। दिखाना न उसका यहा लाज़मी है ।।

असर हो रहा है ये गम के है लम्हे ।
ग़र तस्वीर तेरी दिल में थमी है ।।

चलो अब तो लब्जे जुबाँ से तो बोलो ।
न मैं मोम हूँ न तू कोई ममी है ।।

……R.K.MISHRA
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ग़ज़ल.मेरी करते शिक़ायत है.

।ग़ज़ल।मेरी करते शिकायत हैं।

मेरे हमदर्द वो है जो मेरी करते शिकायत है ।।
दिलोँ से याद करते है जुबां करती बगावत है ।।

बढ़ी है रंजिसे तो क्या फ़िकर करता हूँ उनकी मैं ।
उनके हमवफओ की मेरे इस दिल में इज्जत है ।।

ज़रा मग़रूर रहते है मग़र धोख़ा नही देते ।।
छुपे रुस्तम नही होते अभी उनमे ग़नीमत है ।।

बढ़ें है फासले तो क्या कभी हम एक तो थे ही ।
किसी भी दोस्त से बढ़कर अभी उनकी भी कीमत है ।।

कभी हमको मिली खुशियां उन्हें न गम हुआ होगा ।
उन्होंने ख्वाब में देखा मिली उनको भी जन्नत है ।।

आदत है नही उनकी करे तारीफ़ झूठी वे ।
मग़र तारीफ़ से बढ़कर लगी उनकी नफ़ासत है ।।

यकीनन दोस्त न ठहरे मग़र हैं दोस्त के क़ाबिल ।
उन्हीँ की बद्दुआओं में छिपी मेरी मुहबत है ।।

— R.K.MISHRA

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