गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

!! दुपहरी !!

जलती धरती, धुप कड़क सी
बहती गर्म हवाएँ सन सन सी,
भय फैलाती हु जन जन में
यु न फिरते लोग है दिन में,

तपती नदियाँ, तपते सागर,
तपते है, भरे हुए वह गागर,
तपती ज्वाला में सभी दिशाएं
तपते बगीचे, फूल मालाएं,

तपती रंग बिरंगी कलियाँ,
तपती है गाओं की गालियाँ
तपते सारे शहर और मेले,
तपते बाकी सारे झमेले

है झुलसते पैर तपन से,
जैसे बरसी आग गगन से
जलती हर इंसानो की छाती
जैसे उबलते पानी की भाति,

मैं हु जलाती, मैं झुलसाती,
जेठ की गर्मी मैं बरसाती,
फिरती हु मैं लुक बन बन सी,
हु आई मैं बन दुपहरी सी,

अमोद ओझा (रागी)

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here !! दुपहरी !!

खुद ही

खाकर बर्गर ,चाऊमिन, पिज़्ज़ा
फिदरत दुनिया की बौराय रही
ऊँची दुकानो भोजन करके
पेट पर हाथ फिराय रही

कभी समोसे में आलू
कभी नूडल बीच घुसाय रही
डीप फ्राई चौपाटी पर
रेहड़ी पर लार टपकाय रही

भरकर हवा पानी में
जोश मोको दिलाय रही
कोल्ड्रिंक से डर भगाकर
निडर मोहे बनाय रही

पेस्टी नान केक दीवानी
मख्खन ओपे लगाय रही
रबड़ी छाछ भूली चूल्हे को
सब मिक्सी में घुमाय रही

कोई पिचका है कोई फूला है
जवानी भी और बूढ़ाए रही
चटकारे ले बाली कलियाँ
पैकेट में घुसती जाय रही

बेकिंग सोढा हो गई दुनिया
खुद ही उफनती जाय रही
बाँट चटनी सिलवटे पर
मोरी माँ खिलाय रही

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here खुद ही

तुम्हारे समंदर को मीठा बना दूं

09082014556
तुम्हारे समंदर को मीठा बना दूं
घोल कर प्रीत की ढली
उलीच डालूं तुम्हारे खारेपन,
भर दूं आकंठ
मुहब्बत की तासीर
तुम्हारे खालीपन में बो दूं दूब संगी की
रात रात भर परेशां घूमने वाले परिंदों को
दिखा दूं राह
मुकम्मल कोई
चाहता हूं
कई बार
भर दूं तुम्हारे सूनपन में गीत प्रीत की।
पर कैसे
गा सकता हूं
कोई गीत सोहर के
या फिर मानर
कोई हल्दी के गीत
या फिर परिछन के राग।
कंठ में ही घूं घूं करते
दब जाते हैं
जब भी मुंह खोलता हूं
हजारों हजार चीखें
मक्खी की तरह भिन भिनाने लगती हैं
मुंह बंद कर कुंभक करने लगता हूं
चाहता तो हूं
तुम्हारे जिंदगी के खारेपन को मीठी डली में सान कर थाप दूं उपले।
जब सूख जाएं
लगा दूं आग
तुम्हारे खारेपन में
ताप लूं
तुम्हारी सारी नीरवता।
रात बिरात जो तुम तटों पर करवटें बदल कर परेशां होती हो
चाहता हूं,
कूल विहीन कर दूं
पर कहां संभव है
समंदर को मीठा कर पाना
लहरों को
समझाना कि इतना भी परेशां करना ठीक नहीं।
मैं लगा हूं
समंदर से बात करने में
फुसला रहा हूं उसे
कभी सीखे नदियों से कल कल बहना
मंथर गति से आगे निकल जाना
कूलों से टकराना
अंत में तुम्हीं में मिल जाना
सीखे तेरा खारा समंदर।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here तुम्हारे समंदर को मीठा बना दूं

सरहदें

जब आप आते थे घर पर
घोड़े मेरे बन जाते थे
चाकलेट लाते थे टाफियां
बड़ा सारा प्यार लुटाते थे

अपनी पीठ पर मुझे
बगीचा सारा घुमाते थे
वर्दी पहनकर कड़क वाली
मूछों का रौब दिखाते थे

एक दिन आये कुछ अंकल
मूर्ति आपकी बना गए
तुम्हारे पापा नहीं लौटेंगे
शहीद आपको बता गए

तुम्हारी मूर्ति के आगे से
मै रोज़ गुजरती हूँ पापा
तुम तो कुछ बोलते नहीं
ढेरों शिकायत करती हूँ पापा

देखो पापा ये नहीं चलेगा
मै तो आपकी परि हूँ ना
तुम अब कहानी नहीं सुनाते
मै तो कब से खड़ी हूँ ना

मुझे नींद नहीं आती तुम बिन
तुम्हारी तस्वीर घूरती रहती है
कभी सोचा तुमने, तुम्हारी
नन्ही बेटी पर क्या गुज़रती है

मुझे नहीं पता सरहदें
इन सब को मिटा दीजिये
मुझे मेरे पापा चाहिए, बस
उनको लौटा दीजिये

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here सरहदें

जबसे तुझे मिला

जबसे तुझे मिला तुझी में खोने लगा ।
बदला अतीत मेरा दीवानो सा जीने लगा ।।

ज़िन्दगी की हर ख़ुशी तुझी में ढूंढने लगा ।
मै अक्स बनके साथ तेरे चलने लगा ।।

दिल की प्रेम डायरी में नाम तेरे लिखने लगा ।
भुल के दुनियाँ तेरे ईश्क मशगुल होने लगा ।।

बिन सावन बदरा के यादो में झुमने लगा ।
दरख़्त के निचे बैठ तेरे इंतजार करने लगा ।।

तुमसे मिलने नदी बन तेरे गली बहने लगा ।
जबसे तुझे मिला खुद को भुल जाने लगा ।।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here जबसे तुझे मिला

जबसे तुझे मिला तुझी में खोने लगा ।
बदला अतीत मेरा दीवानो सा जीने लगा ।।

ज़िन्दगी की हर ख़ुशी तुझी में ढूंढने लगा ।
मै अक्स बनके साथ तेरे चलने लगा ।।

दिल की प्रेम डायरी में नाम तेरे लिखने लगा ।
भुल के दुनियाँ तेरे ईश्क में मशगुल होने लगा ।।

बिन सावन बदरा के यादो में झुमने लगा ।
दरख़्त के निचे बैठ तेरे इंतजार करने लगा ।।

तुमसे मिलने नदी बन तेरे गली बहने लगा ।
जबसे तुझे मिला खुद को भुल जाने लगा ।।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here

जबसे तुझे मिला


जबसे तुझे मिला तुझी में खोने लगा
बदला अतीत मेरा दीवानो सा जीने लगा

ज़िन्दगी की हर ख़ुशी तुझी में ढूंढने लगा
मै अक्स बनके साथ तेरे चलने लगा

दिल की प्रेम डायरी में नाम तेरे लिखने लगा
भुल के दुनियाँ तेरे ईश्क मशगुल होने लगा

बिन सावन बदरा के यादो में झुमने लगा
दरख़्त के निचे बैठ तेरे इंतजार करने लगा

तुमसे मिलने नदी बन तेरे गली बहने लगा
जबसे तुझे मिला खुद को भुल जाने लगा

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here जबसे तुझे मिला

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

Guzarish

अ बसंती पवन, अ महकते मधुबन,
अ घनघोर घन, अ गुमनाम गगन।
सुलझा दे मेरी ये उलझन,
मिटा दे दिल मेँ जगी तङपन॥
अ गुस्ताख मन, अ बेताब धङकन,
अ साँस के वहन, अ तरसते नयन।
मत बढ़ा मेरा पागलपन,
मिटा दे मेरे ख्याल-ए-ज़हन॥
अ भादोँ अ सावन, अ वक्त के चलन,
अ गिरे चिलमन, अ धधकती अगन।
बढ़ा दे सनम की मेरी ओर झुकन,
ताकि होना पड़े उन्हेँ मेरा मज़बूरन॥

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here Guzarish

तेरे कारन

तेरे कारन मेरे साजन हम, क्यूँ किताबोँ से दूर हुए।
आशिक थे कई हम हैँ वो नहीँ, जो चाहत मेँ मशहूर हुए॥
आशिक की कब्रेँ खोदी हैँ, महबूब की मेहंदी पौँछी है।
जर्जर जमाने के जब भी, है अलग-अलग दस्तूर हुए॥
तेरे कारन ………….
भर दिए हैँ कई कोरे कागज़, कैसा है अजब ये पागलपन।
गुणगान मेँ तेरी चाहत के, हम गालिब और गफूर हुए॥
तेरे कारन ………….
रुकती-रुकती सी रातेँ हैँ, बहकी-बहकी सी बातेँ हैँ।
पत्थर पथरीले पथ पर हम, क्यूँ चलने को मजबूर हुए॥
तेरे कारन ………….
इक बात मेरी तो मानलो तुम, जीवनभर हाथ ये थाम लो तुम।
उन्हेँ जोड़ने की कोशिश तो कर, जो शीशे चकनाचूर हुए॥
तेरे कारन ………….
तेरा साथ सफर सुहाना है, तेरे बिन बेरंग बेगाना मैँ।
कुछ सोच तो मेरे बारे मेँ, क्यूँ अहं मेँ तुम मगरुर हुए॥
तेरे कारन ………….

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here तेरे कारन

इजहार

इस पल मेँ तू, उस पल मेँ तू,
मेरे हर पल मेँ है तू अब।
मैँ प्यार तुम्ही से करता हूँ,
करता हूँ तुझे ये आज तलब॥
यूँ ही ना कही दिल से निकली,
इस बात का तू मतलब तो समझ।
हामी भर दे रहमत कर दे.
यूँ और ना मुझपे ढा तू गजब॥
देखूँ ना तुझे कुछ पल जो मैँ,
मन मेँ हो जाता है कुछ अज़ब।
बस जीते जी मर जाउँगा मैँ,
हो गया जो तुझसे कभी अलग॥
हाँ कर दी तो लड़ जाउँगा मैँ,
चाहे सामने हो ये सारा जग।
ना से भी तेरी, दुश्वारी नहीँ,
बनी दोस्त रहो है साँसे जब तक॥

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here इजहार

बस हूँ मैँ तेरा

रोको न मुझे मेरे यारोँ, करने दो सनम को याद जरा।
मेरी जिँदगी बस है उनसे, जाने उनमेँ मैँ हूँ क्यूँ रंगा॥
पागल यूँ नहीँ उसके पीछे, कसूर है उसका भी थोड़ा।
बड़ा अहम है अब मेरे खातिर, वो हर लम्हा कतरा-कतरा॥
ज़िँदा हूँ मेहबूब से ही, मेरे रोम-रोम मेँ सनम बसा।
साँस भी लूँ तो लूँ कैसे, मेरी साँसोँ को उसने जकड़ा॥
धड़कन भी अब बड़ी भारी है, मेरी हर धड़कन पर वो बैठा।
किसी डगर चलूँ तो चल न सकूँ, उससे ही शुरु मेरा हर रस्ता॥
कैसा हूँ मैँ क्या हालत है, मेरी हालत का उसे दो तो पता।
डूबा रहता हूँ उनमेँ ही, उन यादोँ का है मुझपे नशा॥
कैसे कहदूँ हमदम को मैँ, उसने मुझपे क्या ज़ुल्म किया।
लग जाए न उसके दिल पर जो, कहदूँ बेरहम ज़ालिम बेहया॥
दिल की बातेँ दिल से निकलेँ, तुम साथ तो दो मेरा इतना।
हिम्मत देना मैँ जब उनको, कहने जो चलूँ बस हूँ मैँ तेरा॥

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here बस हूँ मैँ तेरा

तू

गुलशन है तू गुलबाग है तू, रंगीन भी है बेदाग है तू।
मैँ दिनरात सुबहो शां करता जो, वो सजदा तू आदाब है तू॥
चंद ख्वाब जो मैँने देखे थे, उन ख्वाबोँ का तू हर हिस्सा।॥

मेरे पास है तू मेरे दूर भी तू, मेरे दिल मेँ बहुत मशहूर भी तू।
अ हूर तेरी मगरुरी पर चूर-चूर हूँ मैँ, हर नूर है तू॥
गालिब की गज़ल बीरबल की चपल, मेरी हर मंजिल का तू रस्ता।॥

बड़ी ख़ास भी तू और आम भी तू, लब से निकला हर नाम भी तू।
आगाज़ भी तू अंजाम भी तू, तू ही बेनकल बेशाम भी तू॥
मेहनत भी तू मेरा काम भी तू, मेरी सरज़मीँ का तू हर बिस्सा।॥

इब्तदा है तू इल्तजा है तू, मेरे जीवन की इंतहा है तू।
इल्जाम भी तू और सज़ा भी तू, मेरे खातिर अब खुदा है तू॥
चाहकर मुझसे नहीँ उतरता जो, मेरे हमदम तू है वो नशा।॥

मेरा दिल भी तू धड़कन भी तू, अंग-अंग की मेरे अंगड़न भी तू।
कलम है मेरी मेरा वचन भी तू, मेरी बढ़ती हुई तड़पन भी तू॥
मेरी नस-नस मेँ जो बहते हैँ, वो लहू भी तू तू ही वो हवा।॥

नीँद भी तू मेरा चैन भी तू, है दिन भी तू और रैन भी तू।
जिनको बुना था कभी मैँने, वो ख्वाब भी तू और नैन भी तू॥
बेचैन बहुत हूँ बिन तेरे, मेरी बेचैनी को न और बढ़ा।॥

यादेँ भी तू मेरी भूल भी तू, घायल जिससे वो त्रिशूल भी तू।
तेरी चाहत मेँ मशगूल हूँ , मेरी जड़ भी तू मेरा मूल भी तू॥
जिँदा हूँ मैँ जिस हालत मेँ, मेरी उस हालत का तू किस्सा।॥

शाशन भी तू सरकार भी तू, है नैया तू पतवार भी तू।
मेरा यार भी तू दिलदार भी तू, हूँ कैदी मैँ थानेदार है तू॥
मझदार मेँ मेरी हस्ती को, अ जानम तू अब पार लगा।॥

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here तू

सनम

चाँद मेँ दाग है लेकिन बड़े बेदाग सनम हैँ।
मेरे लिखे हर पन्ने की किताब सनम हैँ॥
देखूँ मैँ दिन-रात जो वो ख्वाब सनम हैँ।
मेरे लिए हीरे से भी नायाब सनम हैँ॥
मेरी जिँदगी, मेरा भूत, कल और आज सनम हैँ।
जमीँ पर उतर आए जो खुदा वो जनाब सनम हैँ॥
गुलशन देखे थे बहुत पर बड़े गुलबाग सनम हैँ।
लुटना ना मेरी तरह उनसे बड़े उस्ताद सनम हैँ॥
मेरा मुल्क मेरी मल्कियत मेरा तख्तोताज सनम हैँ।
मेरे लबोँ से निकलती हर आवाज सनम हैँ॥
नई दुल्हन के खुले घूँघट की लाज सनम हैँ।
वो मेरे हैँ बस मेरे वो मेरे हमराज सनम हैँ॥
मेहबूब के बारे मेँ जितना मैँ कहूँ उतना कम है।
खूबी भरी हैँ इतनी कि बड़े बेहिसाब सनम हैँ॥
जिस चीज पर मुझे अहं है वो नाज सनम हैँ।
अ दुनियावालोँ मैँ कैसे कहदूँ कि कितने लाजवाब सनम हैँ॥

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here सनम

कोरा कागज़

मत भेज़ मुझे कोरा कागज़,
इस पर मैँ न जाने क्या लिख दूँ।
तेरी बेचैनी बढ जाएगी गर,
तुझसे है मोहब्बत हाँ लिख दूँ।
मेरे चारोँ ओर जो फैला है,
तुझ बिन बेरंग समां लिख दूँ।
तुम सोचोगी मुझे हुआ है क्या,
जो हाल-ए-दिल का बयाँ लिख दूँ।
प्यार मेँ तेरे काँटे जो,
दिन-रात सुबह और शां लिख दूँ।
तय किए तड़पते-तरसते जो,
वो ख्वाब-ए-कारवाँ लिख दूँ।
कुछ और तो तूने छोड़ा ना,
बाकी है बस ये जाँ लिख दूँ।
इस दिल मेँ तुमसे है जो अलग,
धूमिल होते वो निशां लिख दूँ।
जरा रोक तो लो मेरी ये कलम,
ना तेरा नाम-पता लिख दूँ।
वो झुकी नज़र लालिम चेहरा,
तेरी सारी शर्मो-हया लिख दूँ।
पाने को तुझको अ हमदम,
अर्ज़ी दरबार-ए-ख़ुदा लिख दूँ।
मत भेज़ मुझे कोरा कागज़,
इस पर मैँ न जाने क्या लिख दूँ।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here कोरा कागज़

WO JINDGI JI NA SAKI

wo jindgi ji na saki.
Mai uske liye kuch kar na saki.
Ek aash lagaye baithi thi.
Ek jyoti Jagaye rahti thi
Arthi ke liye wah leti thi
par mai uske liye kuch kar na saki.
wo jindgi ji na saki.
wo madat ke liye bula rahi thi.
Par mai Usko arthi par Sula rahi thi.
Sula rahi thi mai us jyoti ko
Jo kewal man ki hi moti hai jo
jo manwata ke liye roti ho.
Mai use jindagi de na saki.
wo Jindgi ji na saki.
wo dard se karah rahi thi
par mai use sarah rahi thi
palke uski dhak rahi thi
hoth bejan ho chucke the
bas usse akhiri juba ki aash thi
Mai Use jindgi jita na saki
aur wo jindgi jeet na saki

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here WO JINDGI JI NA SAKI

मूषक से साक्षात्कार

मूषक से साक्षात्कार

एक दिन स्वप्न में
मूषक से हुआ साक्षात्कार
कहने लगा वो मुझसे
कर दूंगा सब बर्बाद

मूषक राज हमारा नाम है
नुक्सान पहुंचाना हमारा काम है
पेट भरने की खातिर अब
कर देंगे सब खल्लास हैं

उससे कहा मैंने ओ मूषक
कर्म ही है तुम्हारा नुक्सान पहुँचाना
मत करो व्यर्थ की वार्तालाप
पेट भरने का तो है बहाना

सुनकर वो तिलमिला गया
और फिर खिस्या गया
बोला बड़े रौब में तब
सुन लो कान खोलकर अब

मेरी कथा से अनजान हो तुम
अज्ञानता की बड़ी खान हो तुम
बने फिरते महान हो तुम
महानता पर अत्याचार हो तुम

मूषक से पहले दानव राज थे हम
हमारी कथा में बड़े महान थे हम
ब्रम्हा जी के दिए वरदान थे हम
जीवन में बड़े खुशहाल थे हम

हम पर सितम कुछ ऐसा ढाया
गणेश ने तुम्हारे हमें मूषक बनाया
वाहन बनाकर हमको अपना
पूरी स्रष्टि का भ्रमण कराया

एक तो गणेश ने तुम्हारे
हालत ख़राब कर दी है
कर-कर के सवारी हमारी
कमर तोड़ डाली है

और तुम लोग हमें मारने का प्रयत्न करते हो
हमारे लिए रैट किलर लाते हो
पिंजरा लाकर हमें पकड़ते हो
हमारी ऐसी तैसी करते हो

भूल गए
स्वभाव से हम राक्षस हैं
तुम्हारे गोदामों में
दुकानों में तबाही मचा देंगे

मत करो हमें पकड़ने का हठ
अन्यथा बहुत पछताओगे
वश में नहीं आने वाले हम
हमसे सदैव मुँह की खाओगे

अब मैं पूर्णतया समझ चुका था
जिसकी हो प्रवृति राक्षसों वाली
ऐसा मेरा उसको मत था
मति रहती उसकी अक्सर खाली

स्वप्न में उसका भयानक द्रश्य था
विशालकाय उसका तन था
देखकर यह द्रश्य स्वप्न टूट गया था
आँखों से मेरी ओझल मूषक हो गया था

देवेश दीक्षित
9582932268

मूषक से साक्षात्कार

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here मूषक से साक्षात्कार

!! चले आओ !!

      कब तक सजाओगे सपने मिलन के !
      छोड़ ख्वाहिशो का दामन चले आओ !!

      कैसे रह पाओगे हमारी दुनिया छोड़कर !
      तोड़कर तन्हाई का दामन चले आओ !!

      जन्नत के सुकून से भरी मेरी आगोश !
      बहके कदमो से सही, तुम चले आओ !!

      डूब जाएंगे इन आँखों में सदा के लिए !
      बहाकर अश्को का समुन्द्र चले आओ !!

      कब तक जिओगे यू घुट-घुटकर जमाने में !
      लांघकर बाधा शर्म ओ हया की चले आओ !!
      !
      !
      !
      ( मूल रचना – डी. के निवातियाँ )

      Share Button
      Read Complete Poem/Kavya Here !! चले आओ !!

जिन्दगी

लम्हा लम्हा जोड़कर
जो तसवीर बनी है
वही तो जिन्दगी है
और इस जिन्दगी का
हर रंग मुझे अजीज है
वह रंग हलका है
कि गहरा…
ये सवाल बेमानी है
बात सिर्फ इतनी है
कि जिन्दगी की
तसवीर
मेरी कहानी है

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here जिन्दगी

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

ईमानदारी

ईमानदारी कहाँ बसी है ,
किसी बिल में छुपी है,
मिलती है, कुछ को,
पर पैसे की चमक,
में दबी पड़ी है,
कुछ छोड़ आते है,
गंगा की लहरों में,
मस्जिद की सीढ़ियों पे,
आवाज़ दब जाती है,
मंदिर के घंटो में,
मस्जिद की आज़ान में,
खोजते है मुआल्वी पंडित,
भगवान अल्लाह के
मानने वालों में,
नेता खोजते अपने,
वोट देने वालों में,
निकल आए उस बिल से,
जब ये ईमानदारी,
तो खोल के जी लेगी
ईमानदारी |

शिवानी

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here ईमानदारी

हमने अपना क्या गंवाया है

      करता खुद से नादानी
      फिर दोष रब पर लगाया है !
      पाया तूने फल कर्मो का
      फिर देख क्यों घबराया है !!

      भूल हए हम अपनी करनी,
      बेदर्द उसको बताया है !
      एक वही कर्ता धर्ता आज
      अपराध उसपे लगाया है !!

      भोविलास में लिप्त हुए,
      देवो को मन से मिटाया है !
      घमंड किया था जिसके बूते
      आज नीचे उसी ने गिराया है !!

      धर्म कर्म को भूल गए हम,
      आज मंदिरो में रास रचाया है !
      बनकर व्यभिचारी हमने,
      खुद को अनिष्ट बनाया है !!

      तन, मन धन सब उसका था
      फिर सब क्यों अपना बताया है !
      सब कुछ था जब उसका,
      फिर हमने अपना क्या गंवाया है !!

      ( मूल रचना – डी. के. निवातियाँ )

      Share Button
      Read Complete Poem/Kavya Here हमने अपना क्या गंवाया है

यौवन भार गर्विता बाले!

26/04/2015
ऐ! बाले! त्वं कथमट्टाले केशप्रशाधयितुं तल्लीना।
गृहम् विशालं तव हे सुमुखे! किं त्वं कुलं कुटुम्बम् हीना।
कस्मै अलक संजालं क्षेपस्यसि वीथी हिंस्र जन्तु आकीर्णा।
रूपाजीवा इव संलग्ना त्वं प्रतिभासि सुरुचि अकुलीना।।1।।
केन प्रशंसा वाञ्छसि भामिनि चंचल नयन प्रसारिणी दीना।
यौवन भार गर्विता बाले! पीनस्तनी गौरा कटि क्षीणा।
ऐ!मृगनयनी मृगयारता काम शर क्षेपण कला प्रवीना।
सुभग़े सुग्रीवेलोल लोचने पीन पयोधरे वसन विहीना।।2।।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here यौवन भार गर्विता बाले!

ग़ज़ल (अजब गजब सँसार )

रिश्तें नातें प्यार बफ़ा से
सबको अब इन्कार हुआ

बंगला ,गाड़ी ,बैंक तिजोरी
इनसे सबको प्यार हुआ

जिनकी ज़िम्मेदारी घर की
वह सात समुन्द्र पार हुआ

इक घर में दस दस घर देखें
अब अज़ब गज़ब सँसार हुआ

कुछ मिलने की आशा जिससे
उस से सब को प्यार हुआ

ब्यस्त हुए तब बेटे बेटी
बूढ़ा घर में जब वीमार हुआ

ग़ज़ल (अजब गजब सँसार )

मदन मोहन सक्सेना

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here ग़ज़ल (अजब गजब सँसार )

सारे जख्म सहून्गा

आई है तू इतने करीब,
बदल दिया है मेरा नसीब।
इतना प्यार तुझे कब हुआ मुझसे,
कि रेह ना पायी एक पल बिन मेरे?

राह देखे तू प्रतिदिन मेरा,
हर शाम, हर सवेरा।
तेरे लिये तो जान हाजिर है,
तेरे लिये आग पर चलू, होकर निर्भय।

सारे जख्म सहून्गा,
तेरा दिल कभी न तोडून्गा।
वादा है मेरा,
सन्ग तेरे हर कदम चलून्गा।

अटूट है ये रिश्ता,
मेरी जिन्दगी मे आई, बनके फरिश्ता।
कोई कमी न थी तेरे आने के बाद,
तेरी बातो को हर पल करता हू याद।

ये जख्म मित जायेन्गे,
ये पल फिर न आयेन्गे।
काश वक्त को यही रोक पाते,
तेरा साथ मेरी जिन्दगी मे खुशी है लाते।

हम एक ऐसे बन्धन मे बन्ध गये,
जहा हर लम्हा एक दूस्ररे की याद मे बीते,
कोई खौफ न रहे किसी का,
सारे जख्मो को मै सहून्गा।

तेरा साथ जरूरी है बस,
किसी भी बात पर न हो बहस,
हम मिलकर बनायेन्गे अपना प्यारा जहान,
जहा हमे मिले आदर और सम्मान।

तेरा साथ काफी है मेरे लिये,
हम हर मुसीबत को झेल लिये,
चाहे जो हो, न होना जुदा,
तेरे सन्ग मै हर पल रहून्गा।

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here सारे जख्म सहून्गा

DHARM

kya hindu kya musalman,
hota hai her dharm main insaniyat ka apmaan,
dhrm ke naam per hota hai dhanda,
ab toa har insaan ho cuka hai andha,
bhagwan toa hai ek,
lekin uniki veraity bana di gai anek,
mandiro main hota hai shopping mall,
ander toa kuch aur,aur bahar kuch aur,
dharm ke naam per yeh hame hai daraty,
bhagwan ke naam per yeh thag ke hai paisa laty,
bhagwano ka na hota samaan ,
cahe hindu ho yaan ya musalmaan.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here DHARM

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

।।कविता।।दो दिन बाद।।

।।कविता।।दो दिन बाद।।

इस बचपन की नादानी में
खुशियो की किलकारी
छुपी हुई थी कभी हमारी
आज तुम्हारी बारी
यह चंचलता
व्याकुलता में
हो ही जायेगी बर्बाद ।।
आज नही तो दो दिन बाद ।। 1।।

ये जीवन की नयी उड़ाने
खुशियो के प्रलोभन
नाशवान इस आकर्षण में
समय सहित सारा धन
चुक जायेगा
जायेगा रुक
आशाओ का यह उन्माद ।।
आज नही तो दो दिन बाद ।। 2।।

रूपो की यह सुंदर छाया
स्वप्नो में अनुमोदन
स्नेहो में संकेतो में
नयनो से सम्बोधन
घटते घटते
मिट जायेगी
रह जायेगी धुँधली याद ।।
आज नही तो दो दिन बाद ।।3।।

उठती ये खुशियो की लहरे
घटते दुःख के बादल
लाभ हानि की सारी चिंता
कर देती जो पागल
भले आज तुम
कोशिस कर लो
पर गिरनी है तुम पर गाज ।।
आज नही तो दो दिन बाद ।।4।।

सभी रास्ते इस जीवन के
सिर्फ दुखो के जाल
क्यों डरते हो डरना किससे
फसना है हरहाल
फ़सा हुआ है
नश्वरता में
होना तो होगा आजाद ।।
आज नही तो दो दिन बाद ।।5।।

****

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here ।।कविता।।दो दिन बाद।।

मेरा मन सोचता है कि

मेरा मन सोचता है कि

आज जब आया भूकंप
नेपाल में पुरे उत्तर प्रदेश में
अचानक प्राकतिक दुर्घटना घटी
उसी पल जमीन फटी
सजे सम्भरें सुसज्जित गृह खँडहर में बदल गये
शमशान गृह में ही सारे शहर ही बदल गये
मेरा मन सोचता है कि

ये चुपचाप सा लेता हुआ युबा कौन है
क्या सोचता है और क्यों मौन है
ये शायद अपनें बिचारों में खोया है
नहीं नहीं लगता है ,ये सोया है
इसे लगता नौकरी कि तलाश है
अपनी योग्यता का इसे बखूबी एहसास है
सोचता था कि कल सुबह जायेंगें
योग्यता के बल पर उपयुक्त पद पा जायेंगें
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बृद्ध पुरुष किन विचारों में खोया है
आँखें खुली हैं किन्तु लगता है सोया है
इसने सोचा था कि
कल जब अपनी बेटी का ब्याह होगा
बर्षों से संजोया सपना तब पूरा होगा
उसे अपने ही घर से
अपने पति के साथ जाना होगा
अपने बलबूते पर घर को स्वर्ग जैसा बनाना होगा
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बालक तो अब बिलकुल मौन है
इस बच्चे का संरछक न जाने कौन है
लगता है कि
मा ने बेटे को प्यार से बताया है
बेटे को ये एतबार भी दिलाया है
कल जब सुबह होगी
सूरज दिखेगा और अँधेरा मिटेंगा
तब हम बाहर जायेंगें
और तुम्हारे लिए
खूब सारा दूध ले आयेंगें
शायद इसी एहसास में
दूध मिलने कि आस में
चुपचाप सा मुहँ खोले सोया है
शांत है और अब तलक न रोया है
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी

मेरा मन सोचता है कि
ये नबयौब्ना चुपचाप क्यों सोती है
न मुस्कराती है और न रोती है
सोचा था कि ,कल जब पिया आयेंगें
बहुत दिनों के बाद मिल पायेंगें
जी भर के उनसे बातें करेंगें
प्यार का एहसास साथ साथ करेंगें
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी

मेरा मन सोचता है कि
आखिर क्यों ?
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना पर
अचानक ये कौन सा कहर बरपा है
किन्तु इन सब बातों का
किसी पर भी, कुछ नहीं हो रहा असर
बही रेडियो ,टीवी का संगीतमय शोर
घृणा ,लालच स्वार्थ की आजमाइश और जोर
मलबा ,टूटे हुयें घर ,स्त्री पुरुषों की धेर सारी लाशें
बिखरतें हुयें सपनें और सिसकती हुईं आसें
इन सबको देखने और सुनने के बाद
भोगियों को दिए गये बही खोखले बादे
अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये
कार्य करने के इरादे
बही नेताओं के जमघतो का मंजर
आश्बास्नों में छिपा हुआ घातक सा खंजर

मेरा मन सोचता है कि
आखिर ऐसा क्यों हैं कि
क्या इसका कोई निदान नहीं है
आपसी बैमन्सय नफरत स्वार्थपरता को देखकर
एक बार फिर अपनी धरती माँ कापें
इससे पहले ही हम सब
आइए
हम सब आपस में साथ हो
भाईचारे प्यार कि आपस में बात हो
ताकि
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना
सभी के सपनें और पुरे अरमान हों
सारी धरती पर फिर से रोशन जहान हो …….

प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here मेरा मन सोचता है कि

रेलगाड़ी की तरह जिंदगी

      रेलगाड़ी की तरह जिंदगी
      जन-जन की बोगी से जुड़ हुए…!
      तमाम उम्र गुजर जाती है
      एक दूसरे से जुड़ते -टूटते हुए…!!

      चलती रेलगाड़ी की तरह
      सरपट दौड़ती, धीमी कभी तेज !
      गंतव्य पाने की अभिलाषा
      दहकती कर्म की अग्नि में तेज़ !!

      प्राणो को ढोती हुई
      जीवन में बोगी रूपी तन !
      किसी का समीप
      किसी का सुदूर लक्ष्य बन !!

      आते अडचने के प्लेटफार्म
      जहाँ पल दो पल रूकती है जिंदगी !
      छोड़कर यादो के मुसाफिर
      फिर रफ़्तार पकड़ चलती है जिंदगी !!

      रिश्तो नाते जिसकी राहे
      किसी से बिछुड़ना किसी की अपनाती !
      रेलगाड़ी की बोगी की तरह
      सफर में कभी जोड़ती कभी हटाती जाती !!

      कितनी समानता लिए
      रेलगाड़ी की तरह जिंदगी चले जिंदगानी !
      अपने गंतव्य को पाते ही
      स्वंय से अपरिचित रहती जिसकी कहानी !!
      !
      !
      !
      ( डी. के. निवातियाँ )

      Share Button
      Read Complete Poem/Kavya Here रेलगाड़ी की तरह जिंदगी

दोस्त

दोस्त और दोस्ती जिंदगी के दो खूबसूरत पल है |
दोस्त हमारे जीवन में ख़ुशी और ग़म के साथी है |
दोस्ती का हर पल मेरे जीवन में उसके जीवन के साथ जुड़ा है |
दोस्त ख़ुशी के पलो में उत्साह और ग़म में धीरज भी देता है |
दोस्ती के पलो में यूनिवर्सिटी कैंपस की मस्ती और शरारत

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here दोस्त

अहसास

ज़िन्दगी के सफ़र में
वक़्त की पगडंडियों पर
कभी कोई मिला
कभी कोई बिछड़ा
मगर ……
कुछ मुलाकातें
खुशबू की तरह समां गयी हैं
अंतर्मन की गहराइयों में
इसलिए बिछड़कर भी
ताउम्र ..बना रहेगा
अहसास
उनके होने का

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here अहसास

मेरा जहाँ

मेरा घर ….
जिसकी दीवारें
बाहें पसारें
रहती हैं प्रतीक्षारत
किसी आगंतुक के लिए
जब भी कोई
देता है दस्तक
दरवाजे पर
मेरा घर
मुस्कुराकर
ले लेता है
उसे ..अपने आगोश में
इसीलिये
मेरे अपने
प्यार की गठरी बांधे
आते रहते हैं
अक्सर यहाँ
उनके कहकशों के बीच
आबाद है
मेरा जहाँ …

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here मेरा जहाँ

रविवार, 26 अप्रैल 2015

चमचागीरी-44

कहाँ ढूंढ रहे हो कहाँ तुम्हारा ध्यान है;
हिंदुस्तान में हर जगह चमचागीरी की दूकान है.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-44

चमचागीरी-43

न ईमानदारी का धनुष और न ही मेहनत की कमान;
कलयुग में केवल चमचागीरी ही करती है कल्याण.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-43

चमचागीरी-४२

हे भगवान यह अच्छा काम क्यों नहीं हुआ;
भूकम्प आया फिर भी एक चमचा नहीं मरा.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-४२

चमचागीरी-41

देश के हर कोने से आवाजें आईं है;
सारे चमचे आपस में भाई-भाई हैं.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-41

चमचागीरी-40

बहुत देर से और जिंदगी के तजुर्बे से यह बात समझ आयी है;
हमारी हड्डियां सूखी हैं क्यूंकि चमचों ने हमारी मलाई खाई है.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-40

चमचागीरी-39

वैसे तो ऐसा कोई नहीं लिखता है;
किन्तु ग्लूकोज और चमचागीरी का असर तुरंत दिखता है.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-39

चमचागीरी-38

चमचे एवं चन्द्रमा से बच कर रहें क्युंकि;
यह दोनों आपके जीवन में ग्रहण लगा सकते हैं.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-38

चमचागीरी-37

जो बॉस दिखने में तगड़े होते हैं;
वे सभी चमचों के बिना लंगड़े होते हैं.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-37

चमचागीरी-36

कितनी सदियाँ बीत जाएँगी तुझे समझाने में;
हर जगह चमचे ही लगे हैं तेरी लुटिया डुबाने में

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-36

चमचागीरी-35

जब कभी बेवजह खिचाई होती है;
वह आग चमचों की लगाई होती है.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-35

चमचागीरी-34

मत रखो चमचों से एलर्जी;
क्यों कि चमचागीरी है सीक्रेट ऑफ़ एनर्जी.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-34

मेरा प्यार

मेरा प्यार

इश्क़ मैने तो सिर्फ आपसे किया था, मगर आपने हमारा प्यार ठुकरा दिये,
हम तो दर्द से तडप रहे थे और आप मुस्कुराकर चल दिये ,
सुबह शाम हम तो बस आपको याद किया करते थे
मगर आप तो एक पल भी हमे याद करणे से कतरा रहे थे
राह पर जब आप हमे नजर आते तो हम फुले नही समाते थे
और एक आप थे कि नजर नीचे झुकाकर निकल जाते थे
खैर , जो हुआ उसे अब हम भी भुलाना चाहते है
तुम्हे भूलाकर अब हम अपना ख़ुशी का घर बनाना चाहते है /

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here मेरा प्यार

चमचागीरी-33

जिंदगी झाड़ है मुसीबतों का पहाड़ है;
नौकरी में या तो चमचागीरी है या अपनी-अपनी जुगाड़ है.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-33

चमचागीरी-32

जहाँ लोग सिर्फ अपने काम की जिद पे अड़े हों;
चमचों से कह दो अलग से हट कर खड़े हों.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-32

मेरा प्यार
इश्क़ मैने तो सिर्फ आपसे किया था, मगर आपने हमारा प्यार ठुकरा दिये,
हम तो दर्द से तडप रहे थे और आप मुस्कुराकर चल दिये ,
सुबह शाम हम तो बस आपको याद किया करते थे
मगर आप तो एक पल भी हमे याद करणे से कतरा रहे थे
राह पर जब आप हमे नजर आते तो हम फुले नही समाते थे
और एक आप थे कि नजर नीचे झुकाकर निकल जाते थे
खैर , जो हुआ उसे अब हम भी भुलाना चाहते है
तुम्हे भूलाकर अब हम अपना ख़ुशी का घर बनाना चाहते है /

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here

चमचागीरी-31

दुनिया में चमचागीरी एक फैक्ट है, इसमें जीरो मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट है;
चमचागीरी है आयुर्वेदिक और हर्बल भी क्यों कि इसका नहीं कोई साइड-इफ़ेक्ट है.

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here चमचागीरी-31

जीवन-साथी

मेरे जीवन साथी
मैं तुम्हें स्वेक्षा से नमन करती हूँ !!
सकुची-सकुची आई थी
घर आँगन में तुम्हारे
लोगों ने बताया था यही है ससुराल
उधड़ेगी की खाल
उठेंगे कई सवाल ?
होगा तुम्हारी हर हरकत पर
बेतहासा बवाल … !!
आएगा भूचाल जो
अपनी जुबान खोलेगी ,
किसी के सामने तो क्या
मजाल है कि
किसी कोने में भी
रो लेगी !!
तुमने बचाया मुझे परपन्चों से
तमाम उलझे प्रश्नों से
मेरे आँसुओं को मिला
तुम्हारा विशाल भुजबंध ..
तोड़कर सब तटबंध
तुमने भरा मुझमें
उड़ने का हौसला ..
मेरे जीवन साथी
मैं तुम्हें स्वेक्षा से
नमन करती हूँ !!

@ भावना तिवारी bhavana tiwari

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here जीवन-साथी

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

छंद

दिल्ली में रैली हुई बके केजरीवाल |
लटके सिंह गजेन्द्र जी जनता है बेहाल ||
जनता है बेहाल केजरी भाषण देते |
सदा कुंवर विश्वास बलाएँ उनकी लेते ||
कवि मर्यादा तोड़ बना कोई कवि बिल्ली |
शाशक बनते ब्याध रो रही कब से दिल्ली ||
कवि मर्यादा छोड़कर भटको मत विश्वास |
ब्याध क्रौंच बध कर रहे बधिक दिखाते रास ||
बधिक दिखाते रास हुआ कवि कुल है आहत |
सच्चाई से दूर हुई है आम सियासत ||
बाल्मीकि की आन न अब तुम तोड़ो ज्यादा |
बन लवकुश प्रतिमान दिखा दो कवि मर्यादा ||
कवि आभूषण है व्यथा भागो मत विश्वास |
श्राप बधिक को दीजिये सिसक रही है लाश ||
सिसक रही है लाश सियासत बनीं शिकंजा |
लूट रहें हैं देश साइकिल झाडू पन्जा ||
फूल बना है शूल तिमिर छाया में है रवि |
सच बोलो विश्वास बनों भूषण जैसे कवि ||
बिल्ली बनकर मत रहो शेर कुंवर विश्वास |
शायर हो शायर रहो राजनीति बकवास ||
राजनीति विश्वास अमर हर कवि होता है |
खाकर थप्पड़ हाय केजरी भी रोता है ||
शिव का है ऐलान बदल जायेगी दिल्ली |
कवि या शायर शेर कभी भी बने न बिल्ली ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
941224548

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here छंद

संभल जाओ ऐ दुनिया वालो

      संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
      वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !
      रब करता आगाह हर पल
      प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!

      लगा बारूद पहाड़, पर्वत उड़ाए
      स्थल रमणीय सघन रहा नही !
      खोद रहा खुद इंसान कब्र अपनी
      जैसे जीवन की अब परवाह नही !!

      लुप्त हुए अब झील और झरने
      वन्यजीवो को मिला मुकाम नही !
      मिटा रहा खुद जीवन के अवयव
      धरा पर बचा जीव का आधार नहीं !!

      नष्ट किये हमने हरे भरे वृक्ष,लताये
      दिखे कही हरयाली का अब नाम नही !
      लहलाते थे कभी वृक्ष हर आँगन में
      बचा शेष उन गलियारों का श्रृंगार नही !

      कहा गए हंस और कोयल, गोरैया
      गौ माता का घरो में स्थान रहा नही !
      जहाँ बहती थी कभी दूध की नदिया
      कुंए,नलकूपों में जल का नाम नही !!

      तबाह हो रहा सब कुछ निश् दिन
      आनंद के आलावा कुछ याद नही
      नित नए साधन की खोज में
      पर्यावरण का किसी को रहा ध्यान नही !!

      विलासिता से शिथिलता खरीदी
      करता ईश पर कोई विश्वास नही !
      भूल गए पाठ सब रामयण गीता के,
      कुरान,बाइबिल किसी को याद नही !!

      त्याग रहे नित संस्कार अपने
      बुजुर्गो को मिलता सम्मान नही !
      देवो की इस पावन धरती पर
      बचा धर्म -कर्म का अब नाम नही !!

      संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
      वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !
      रब करता आगाह हर पल
      प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!
      !
      !
      !
      डी. के. निवातियाँ ____________@@@

      Share Button
      Read Complete Poem/Kavya Here संभल जाओ ऐ दुनिया वालो